Friday 30 November 2018

दिल्ली में किसान मोर्चा

कल से दिल्ली में दो दिन का किसान आंदोलन शुरु है। आजयह आंदोलन भारतीय संसद के दरवाजे पर पहुंचने वाला है। रामलीला मैदान में हजारों किसान धरने पर है। फिर नेताओं का जमावड़ा कैसे पीछे रह सकता है। और ये ही लोग किसानों का जमावड़ा भी इकट्ठा कर सकते है। गरीब किसान तो अपना इलाज करवाने शहर तक भी नही जा सकता है। इतने बड़े आंदोलन के लिए पैसा चाहिए, स्पांसर करने वाला चाहिए। पर्दे के पीछे कौन है? कोई न कोई बड़ी ताकतें तो होगी ही।

आश्चर्य कि बात तो यह है कि आज जो नेता इन किसानों के साथ खड़े दिखाई दे रहे है, उनमें से कइयों को लम्बे समय तक सत्ता सुख भोगते हुए देखा गया है। सत्ता सुख तो इन्होंने लम्बे समय तक भोगा है पर देश के किसानों की हालत बद से बदतर होती चली गई। किसान आत्महत्यायें करने पर बाध्य हो गये। हां, फरक पड़ा है इन नेताओं की सम्पति का जो कई गुणा बढ़ी है। अनेकों उदाहरण सभी जानते है। राजनेता अथाह सम्पति के मालिक कैसे बनें? इसका जवाब ये लोग नही देते। किसानों की गरीबी और भूखमरी का उपयोग करना ये लोग भली भांति जानते है। और साढ़े चार साल पहले सत्ता में आये मोदी सरकार को सारा दोष देना यह तो इनका प्रमुख दांव है। जैसे किसानों की सारी समस्यायें मोदी के आने पर ही आई हो। जैसे  देश में इसके पहले देश में किसान मालामाल थे। कोइ आत्महत्या नही करते थे। केवल मोदी ने ही किसान के इतने बुरे दिन पैदा किए।

कुछ विपक्ष के राजनेताओं को और साथ ही बांई विचारधारा के पक्षधरों को तो गरीब अच्छे लगते है। तभी तो इनके "गरीबी हटाओं,  मुफ्त में राशन, मुफ्त में बिजली, मुफ्त में पानी, कर्जा माफी" जैसे अनेकों नारें जन्म ले सकते है और जनता को भिखारी बनाया जा सकता है। अशिक्षा, गरीब और गरीबी तो इनका सबसे बड़ा राजनैतिक हथियार है। तभी तो देश में क्रांति का नारा दिया जा सकता है। यदि न रहेगा बांस तो बंशी कहा से बजेगी? न रहेगा गरीब तो इनकी राजनीति की दुकान कैसे चलेगी? अतीत गवाह है कई बार और कई राज्यों में किसानों का कर्जा माफ किया गया है। कई बार मुफ्त में राशन और बिजली बांटी गई है। पर क्या किसानों की और देश के गरीबों की आर्थिक हालत सुधरी है?

आज किसानों को भीख देने की नही है। जरुरत है, उन्हें सिंचाई के अच्छे साधन, फसल की उचित किंमत और फसल खराब होने पर उचित मुवावजा देने की। साथ ही किसानों को अच्छी स्वास्थ्य सेवा, उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा और उचित मुल्यों पर अच्छे बीज और उर्वरक उपलब्ध करवाने की आवश्यकता है।

देश का अन्नदाता जो अपना पेंट भरने के लिए पूरे राष्ट्र का और  राष्ट्र के हर नागरिक का पेंट भरता हो, उसे भूखा रखना और आत्महत्या के लिए मजबूर करना सबसे बड़ा देश का सामूहिक गुनाह और पाप है। यह बंद होना चाहिए। इस पर हर राजनेता और नागरिक को एक होना चाहिए। यह राजनीति का विषय नही है। इस पर राजनीति बंद होना चाहिए।

Monday 19 November 2018

तुलसी विवाह

कर्म फल से कोई नही बच सकता। देवता भी नही। तुलसी विवाह से प्रचलित कहानी यह बात सिद्ध करती है।



कहानी भगवान राम के जन्म काल से भी पहले की है। उस समय जलन्धर नामक अत्यंत बलशाली राक्षस बड़ा उत्पाती था। उसके उत्पात से देवतागण भी परेशान थे। जलन्धर का वध करना किसी के बस में नही था। इसका कारण था, उसकी पत्नी, वृन्दा का पतिव्रत धर्म। उसके पतिव्रत धर्म के प्रभाव के कारण ही जलन्धर पर विजय पाना किसी के लिए भी अत्यंत कठीन था। इसके उपाय के लिए परेशान देवतागण भगवान श्रीविषणु के पास गये और सहायता मांगी। देवतागणों को बचाने का विष्णुजी को कोई उपाय समझ में नही आ रहा था, सिवाय पतिव्रता वृन्दा का पतिव्रत धर्म भंग करने के।

यह काम भी इतना आसान नही था। छ्ल कपट का सहारा लेना पड़ा। एक योजना के तहत देवताओं ने जलन्धर को युद्ध के लिए ललकारा और उधर भगवान विष्णु जलन्धर का रुप लेकर वृन्दा के पास जा पहुंचे। वहां उन्होंने वृन्दा को छूकर उसका पतिव्रत धर्म भंग किया। उसके परिणाम स्वरुप उसी समय उधर युद्ध में जलन्धर पराजीत होकर मारा गया और उसका सिर कटकर वृन्दा के समक्ष जा गिरा। यह देखकर वृन्दा ने जलन्धर के रुप में सामने खड़े व्यक्ति की पहचान जानना चाहा। वह क्या देखती है, उसके सामने साक्षात विष्णु खड़े थे।  क्रोधित होकर उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया। उसने कहा जैसे तुमने छल से मेरे पति की हत्या कर मुझे पति वियोग दिया वैसे ही तुम्हें भी पत्नी वियोग सहना पड़ेगा। तुम्हारी पत्नी का भी छ्ल से हरण किया जायेगा और तुम्हें पत्नी वियोग में तड़पना पड़ेगा। इसके लिए तुम्हें पृथ्वी पर मानव जन्म लेना पड़ेगा। इसके पश्चात वृन्दा अपने पति के शरीर साथ चीता में प्रवेश कर सती हो गई और परमात्मा में विलीन हो गई। वहां एक पौधा निकला जिसे तुलसी का नाम दिया गया। वृन्दा के सतीत्व की याद में ही हर वर्ष तुलसी का विवाह श्री विष्णुजी के साथ किया जाता है।

वृन्दा के श्राप के फलस्वरुप भगवान विष्णु को पृथ्वी पर अयोध्या में राजा दशरथ के पुत्र राम के रुप में मानव अवतार लेना पड़ा। वनवास के समय लंकाधिपति रावण के द्वारा सीता का छ्लपूर्वक हरण किये जाने पर पत्नी वियोग सहना पड़ा।

यह भगवान विष्णु को वृन्दा का श्राप मानें या कर्मफल माने, दोनों एक ही बात है। कर्मफल से किसी का बचना असंभव है। देवताओं के लिए भी नही।

एक कहानी यह भी है कि वृन्दा ने विष्णुजी को उसके साथ छ्ल करने के लिए श्राप दिया था कि तुम पत्थर बन जाओगे। उस पत्थर को शालीग्राम का नाम दिया गया। देवताओं के आग्रह पर वृन्दा ने अपना श्राप वापस लिया और भगवान विष्णु पुनः प्रकट हुए। उन्होंने वृन्दा से कहा कि तुम्हारे सतीत्व का मै सम्मान करता हूं। तुम तुलसी का पौधा बनकर हमेशा मेरे साथ रहोगी। उस समय से हर वर्ष तुलसी का विवाह शालीग्राम के साथ सम्पन्न किया जाता है। इसलिए बिना तुलसी दल के विष्णुजी की पूजा अधूरी मानी जाती है।

आज भी उसी परम्परा की पुनरावृती है। कार्तिक माह की एकादशी को हिन्दु धर्म को मानने वाले तुलसी के पौधे की भगवान शालीग्राम याने श्री विष्णुजी के साथ सम्पन्न करते है।

Tuesday 13 November 2018

हिन्दु एक चौराहे पर

मै भारत ही नही विश्व के सभी धर्मों के अन्दर गर्भित परम सत्य का आदर करता हूं।सभी धर्मों के अन्दर अच्छाई की मूल भावना ही मेरा धर्म है। "एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति" की कल्पना को स्वीकार करते हुए मै यह मानता हूं कि सभी धर्मों ने देश, काल, और परिस्थिति के अनुसार एक ही सत्य को अलग अलग तरीके से उजागर और परिभाषित किया है। किसी अन्य पर अत्याचार या उसका शोषण कर अपना  या अपने धर्म का हित सिद्ध करना न तो मेरा धर्म है और न ही मेरी प्रवृति है। मै एक हिन्दु हूं जो वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना का आदर और सम्मान करता है। स्वामी विवेकानन्द के द्वारा १८९३ में शिकागो धर्म संसद में कहा था, "मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते है"। स्वामी विवेकानन्दजी के इस कथन को मै अपना मूल मंत्र मानता हूं।


मुझे विश्वास है, हर एक सच्चा और अच्छा हिन्दु इन्हीं मान्यताओं को लेकर जीता है।

लेकिन आज मुझे बहुत दुख होता है जब अनेकों राजनेता अपने राजनैतिक लाभ और वर्ग विशेष को खुश करने के लिए "हिन्दु" शब्द को रोज घोर अपमानित कर रहे है। हिन्दु आतंकवाद, हिन्दु पाकिस्तान, अच्छा हिन्दु, बुरा हिन्दु, हिन्दु मंदिर में लड़किया छेड़ने जाते है आदि अनेकों शब्दों का उपयोग कर हिन्दुओं को अपमानित करते है। इनमें कई लोग हिन्दु ही है और कुछ लोगों की विडंबना यह है कि वोट के फायदे के लिए वे वेशभूषा बदल कर हिन्दु होने का ढोंग रचाते है। पता नही ऐसे बनावटी हिन्दु अच्छे या बुरे हिन्दुओं की श्रेणी में आते है। भारत एक हिन्दु बहुल देश है। क्या हिन्दुओं और हिन्दु धर्म को बदनाम और कमजोर करने की यह इन  राजनेताओ की साजीश तो नही है? क्या जिस धर्म ने विश्व को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है, उसे कमजोर कर खत्म करने की कोई विश्व स्तरीय योजना कार्यरत है? यदि ऐसा नही तो ऐसे वक्तव्य क्यों आते है? क्यों हिन्दु धर्म की मूल भावना और अच्छाई को शिक्षा से १९४७ के बाद दूर रखा गया है। क्यों शिक्षा में गीता और रामायण जैसे हिन्दुओं के ग्रंथों को कोसों दूर रखा गया है। धर्म निरपेक्षेता के नाम पर इन ग्रंथों में निहित नैतिक मूल्यों को क्यों शिक्षा में स्थान नही दिया गया। क्यों भारत के आदि काल से चली आ रही नैतिक  शिक्षा को खत्म किया गया है? आज हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक भगवान राम को काल्पनिक क्यों बताया जाता है? क्यों हिन्दु धर्म या हिन्दुओं की बात करना आज सांप्रदायिकता मानी जाती है और मुसलमान की बात करना धर्म निरपेक्षता माना जाता है?

ऐसे कई प्रश्न है जो एक सच्चे भारतीय और सच्चे हिन्दुओं के मन में अवश्य आते होंगे। इसके उत्तर हमें ही ढूंढना है। विचार करना है। कल क्या हो किसने देखा पर हिन्दुओं को जागरुक रहने की अवश्य जरुरत है। यदि हम नही संभले तो मुझे डर है कि कहीं हिन्दुओं की उदारता कल उन्हें ही न ले डूबे।

Sunday 4 November 2018

अयोध्या में राम मंदिर

आज कांग्रेस और सारा विरोध पक्ष अयोध्या में राम मंदिर बनाने के सहयोगी दलों और विशेष तौर पर भारतीय जनता पार्टी को सुप्रीम कोर्ट के सम्मान और मर्यादा की याद दिला रहा है। बात सही है, प्रजातंत्र में संविधान सर्वोपरी है और इसका सम्मान करना हर भारतीय और राजनैतिक दलों का दायित्व ही नही बल्कि कर्तव्य है। लेकिन....

1. उस व्यवस्था में देश की जनता क्या करें जब किसी विवाद को सुलझाने के लिए सत्तर साल से भी ज्यादा लग जाते है। वह अदालत का कैसे सम्मान का दावा कर सकती है जो राम जन्म भूमि विवाद पर तारीख पे तारीख देती रहती है, जबकि कुछ विषयों पर आधी रात को भी दखाजें खोल देती है? जनता इस विराधाभास को कैसे मान लें?

2. अदालत और संविधान के सम्मान का विषय तब कहां चला गया था जब इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले को कांग्रेस पार्टी ने नही माना  जिसमें स्व. प्रधान मंत्री को अपदस्थ किया गया था और बाद में देश को इमरजेंसी के दौर का सामना करना पड़ा?

3. अदालत और संविधान के सम्मान का विषय तब कहां चला गया था जब शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कांग्रेस काल में पूर्व प्रधान मंत्री स्व. राजीव गांधी ने कोर्ट उलट दिया था?

गलत परिपाटी की नींव तो कांग्रेस ने रची। आज वह ज्ञान बांट रही है। लेकिन इसके अध्यक्ष आज हिन्दु वोट के लिए जनेउधारी शिवभक्त हिन्दु बनकर मंदिर मंदिर भटक रहे है, कल राम मंदिर बनाने का क्या विरोध कर पायेंगे? यह निर्णय उन्हें दलदल और खाई चुनने जैसी चुनौती से कम नही होगा।


भारतीय जनता पार्टी के लिए तो यह परीक्षा की घड़ी है ही। एक तरफ वह सत्ता में होने से उसके हाथ संविधान से बंधे है तो दुसरी तरफ हिन्दु समाज और संगठनों का उस पर राम मंदिर बनवाने के लिए  दबाव बढ़ता जा रहा है। तीसरी तरफ राजनीतिक दृष्टि से राम मंदिर उसके लिए हमेशा एक मुद्दा रहा है और लोकसभा चुनाव समीप होने से राम मंदिर का निर्माण उसके लिए फायदेमंद हो सकता है।

जो भी हो, इतिहास की विरासत तो वर्तमान को झेलना ही पड़ता है।

Nyay or Anyay

Is it a Nyay Yojana or AnyayYojana?  Congress sets it's desperate game plan to come to power at any cost, not at any cost to itself b...