Wednesday, 28 March 2018

गीता सार और वर्तमान भारत

अर्जुन जो एक समय युद्ध छोड़कर जीवन यापन के लिए भिक्षा मांगने के लिए तैयार हो गया था, आखिर युद्ध के लिए खड़ा हो गया।

क्यों?


इसलिए नही कि उसे भगवान कृष्ण ने गीता का उपदेश देकर युद्ध के लिए तैयार किया। बल्कि वह अपने स्वतः की इच्छा से अपने  विवेक का उपयोग कर युद्ध के लिए प्रेरित हुआ। भगवान कृष्ण तो एक आवाज,  एक माध्यम, एक अन्तरआत्मा के द्योतक मात्र थे। इससे यही तत्व निकलता है कि जिन्दगी में कोई मार्ग दर्शक हो सकता है लेकिन अपनी लड़ाई हर एक को स्वयं लड़ना पड़ता है।

यही गीता सार है, यही धर्म हे, यही नीतिधर्म है, यही कर्तव्य है, यही कर्म है, यही कर्मयोग है। इसी में स्वयं का और जगत का हित है।

हर युग में दैवी शक्तियों और आसुरी शक्तियों के बीच सदा से टकराव रहा है। देश-काल के अनुसार इन शक्तियों की मात्रा कम ज्यादा हो सकती है। रावन सतीयुुग में भी था और आज कलियुग में भी है। धृतराष्ट्र और दुर्योधन त्रेतायुग में भी थे और आज कलियुग में भी है। उसी प्रकार भगवान राम भी सतीयुग में थे और कलियुग में भी है। भगवान कृष्ण त्रेतायुग में भी थे और आज कलियुग में भी है।अर्जुन तब भी था, आज भी है। राजनीति उस समय भी थी और आज भी है।

आज के परिपेक्ष में देखा जाए तो भारत भूमि पर आज भी महाभारत का युद्ध चल रहा है। कुछ ताकतें सत्ता के लिए धृतराष्ट्र की तरह अंधे होकर अपने अपने दुर्योधनों को सत्ता की कुर्सी पर बिठाना चाहते है, वही कुछ लोग इनके विरोध में प्रजातांत्रिक तरीके से लड़ने के लिए प्रेरित हो रहे है। सत्ता की होड़ में आसुरी शक्तियां मानसिक रूप से पथभ्रष्ट होकर छ्ल-कपट, लूट, भ्रष्टाचार,  समाज को जात पांत, दलित-महादलित, अल्पवर्ग, सवर्ण, आरक्षण-अनारक्षण, हिन्दु-मुस्लिम, और तो और राष्ट्र विरोधी बाहरी ताकतों से भी हाथ मिलाकर देश की जड़े कमजोर कर रहे है। वही कुछ ताकतें इनके विरोध में खड़ी दिखती है। लेकिन इनमें भी दैवी शक्तियां पर्याप्त मात्रा में दिखाई नही देती। कोई बात नही। त्रेतायुग भी कौरव सौ थे और पांडव केवल पांच। अन्तर यही था कि कौरवों के साथ अनीति थी, अधर्म था वही पांडवों के साथ कृष्ण थे, नीति थी, धर्म था।इसके लिए समाज को, देश के नागरिकों को  जागरुक होकर दैवी शक्तियों को बलशाली बनाने की जरूरत है। अपने अन्दर स्थित कृष्ण की आवाज सुनना है। नीति और धर्म के पथ पर चलना है। हरेक को अर्जुन बनना है तभी देश का अर्जुन विजयी होगा और कौरवों की भीड़ पराजित होगी।

Sunday, 18 March 2018

Four principles of Spirituality


It is not important whether you believe in spirituality or not, the four principles of spirituality apply to all from the moment one is born and will remain there till the end!
Four principles of spirituality

The First Principle states:

"Whomsoever you encounter is the right one"

This means that no one comes into our life by chance. Everyone who is around us, anyone with whom we interact, represents something, whether to teach us something or to help us improve a current situation.

The Second Principle states:

"Whatever happened is the only thing that could have happened"

Nothing, absolutely nothing of that which we experienced could have been any other way. Not even in the least important detail. There is no "If only I had done that differently, then it would have been different". No. What happened is the only  thing that could have taken place and must have taken place for us to learn our lesson in order to move forward. Every single situation in life which we encounter is absolutely perfect, even when it defies our understanding and our ego.

The Third Principle states:

"Each moment in which something begins is the right moment"

Everything begins at exactly the right moment, neither earlier nor later. When we are ready for it, for that something new in our life, it is there, ready to begin.

The Fourth Principle states:

"What is over, is over"

It is that  simple. When something in our life ends, it helps our evolution. That is why, enriched by the recent experience, it is better to let go and move on.

Think it is no coincidence that you're here reading this.

If these words strike a chord, it's because you meet the requirements and understand that not one single snowflake falls accidentally in the wrong place!

Be good to yourself.

Love with your whole being.

Always be happy
Love like there's no tomorrow. And if tomorrow comes, well.  Love again
#unknown..

*Rec'd on social media. I liked it and believe in it. Thought of sharing. 

Nyay or Anyay

Is it a Nyay Yojana or AnyayYojana?  Congress sets it's desperate game plan to come to power at any cost, not at any cost to itself b...