चैतन्य महाप्रभु को आधुनिक भक्तिमार्ग का जनक माना जाता है। चैतन्य का अर्थ है ज्ञानी, वह व्यक्ति जो पूर्ण चेतना युक्त हो। महाप्रभु का अर्थ है महान ईश्वर। इस तरह चैतन्य महाप्रभु का अर्थ हुआ एक ऐसा महान ईश्वर जो ज्ञान और चेतना से परिपूर्ण हो। उन्हें उनके अनुयायी स्वयं श्रीकृष्ण का अवतार मानते है। माना जाता है कि आम लोगों का रुझान भक्तिमार्ग की ओर मोड़ने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अपने एक शिष्य के रूप में अवतार लिया। आज से करीब 500 वर्ष पूर्व उन्होंने भारत भूमि पर जन्म लिया था।
उनका जन्म बंगाल के नाडिया के पास मायापुर नामक स्थान पर 18 जनवरी 1486 के दिन हुआ था जो एक पूर्ण चन्द्रमा की रात थी। उनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्रा और माता का नाम साची देवी था। माता पिता ने उनका नाम विश्वंभर रखा था। विश्वंभर बालक बहुत सुन्दर था। उन्हें कई लोग गौरांग या गौरा के नाम से भी बुलाते थे। उनका जन्म नीम के पेड़ के नीचे हुआ था, इसलिए कई लोग उन्हें नीमाई के नाम से भी जाना जाता है। अपने बाल्य व युवा अवस्था में असाधारण बुद्धिमान थे। अपनी विद्वता के कारण उन्होने एक विद्यालय भी शुरु किया था, जिसकी आधारशीला भागवत पुराण और श्रीमदभगवत गीता के ज्ञान पर आधारित थी। उनकी ख्याति एक शुद्ध और महान कृष्ण भक्त के रुप में बढ़ती जा रही थी। बाद में वे वैष्णव समुदाय के पथ प्रदर्शक बन गए। वैष्णव समुदाय के कर्ता धर्ता बनने के बाद वे कृष्ण भक्ति का ज्ञान और आत्मिक शांति के लिए मंत्र जाप करने का उपदेश देने लगे।
उनका जन्म बंगाल के नाडिया के पास मायापुर नामक स्थान पर 18 जनवरी 1486 के दिन हुआ था जो एक पूर्ण चन्द्रमा की रात थी। उनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्रा और माता का नाम साची देवी था। माता पिता ने उनका नाम विश्वंभर रखा था। विश्वंभर बालक बहुत सुन्दर था। उन्हें कई लोग गौरांग या गौरा के नाम से भी बुलाते थे। उनका जन्म नीम के पेड़ के नीचे हुआ था, इसलिए कई लोग उन्हें नीमाई के नाम से भी जाना जाता है। अपने बाल्य व युवा अवस्था में असाधारण बुद्धिमान थे। अपनी विद्वता के कारण उन्होने एक विद्यालय भी शुरु किया था, जिसकी आधारशीला भागवत पुराण और श्रीमदभगवत गीता के ज्ञान पर आधारित थी। उनकी ख्याति एक शुद्ध और महान कृष्ण भक्त के रुप में बढ़ती जा रही थी। बाद में वे वैष्णव समुदाय के पथ प्रदर्शक बन गए। वैष्णव समुदाय के कर्ता धर्ता बनने के बाद वे कृष्ण भक्ति का ज्ञान और आत्मिक शांति के लिए मंत्र जाप करने का उपदेश देने लगे।
अपनी जिंदगी के 24 साल उन्होंने पूरी ओडिशा के प्रसिद्ध महान जगन्नाथ मंदिर में बिताये थे। उन्होंने कृष्ण भक्ति और कृष्ण प्राप्ति के लिए कृष्ण के जन्म स्थान मथुरा और बाल लीला स्थल वृंदावन का भी भ्रमण किया।
कृष्णा भक्ति में पूर्णतः लीन रहने के बाद उन्होंने समाधि ले ली और सदा के लिए कृष्ण भक्ति में तल्लीन हो गए।
उनके द्वारे सिखाई गयी कुछ बाते निचे दी गयी है –
1.
कृष्णा ही सर्वश्रेष्ट परम सत्य है।
2.
कृष्णा ही सभी उर्जाओ को प्रदान करता है।
3. कृष्णा ही रस का सागर है।
4. सभी जीव भगवान के ही छोटे-छोटे भाग है।
5. जीव अपने तटस्थ स्वाभाव की वजह से ही मुश्किलों में आते है।
6. अपने तटस्थ स्वाभाव की वजह से ही जीव सभी बन्धनों से मुक्त होते है।
7. जीव इस दुनिया और एक जैसे भगवान से पूरी तरह से अलग होते है।
8. पूर्ण और शुद्ध श्रद्धा ही जीवो का सबसे बड़ा अभ्यास है।
9. कृष्णा का शुद्ध प्यार ही सर्वश्रेष्ट लक्ष्य है।
उन्होंने कृष्ण भक्ति के लिए महान और मधुर मंत्र दिया जो इस प्रकार है।
“हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे। हरे कृष्णा, हरे कृष्णा, कृष्णा कृष्णा हरे हरे।।”
इस मंत्र को आज भी विश्व भर में प्रेम के साथ गाया जाता है।
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