भारत सरकार की नोट बंदी......विपक्ष की खोखली मानव संवेदना और घड़ियाली आंसू....
लगभग सारे विपक्ष के दिग्गज नेता गला फाड़ फाड़कर और चिल्ला चिल्ला कर आम आदमी के लिए अपनी संवेदना दिखा रहे है। कुछ लोगों की नोट बदलने की कतार में मौत हुई है। यह बड़े दुख की बात है। नोट बदलने की प्रक्रिया को सरल और युद्ध स्तर पर कार्यरत किया जाना चाहिए था। प्रबंधन को बेहतर बनाया जा सकता था। पर नोट बंदी राष्ट्र पर लगे काले धन रुपी कर्क रोग (cancer) पर कई उपचारों में से एक बहुत ही कारगर औषधि और एक संकेत भी है, इसमें संदेह नही। इस बात पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से शुरु में लगभग सभी राजनीतिक दलों ने सहमति दिखाई थी। कोई चारा भी नही था । यदि विरोध दिखाते तो यह प्रकट हो जाता कि झ्नके पास काला धन है। बाद में लम्बी लम्बी कतारों और कुछ दुखद मृत्युओं की आड़ मिल जाने से (शायद इसी का इन्तजार भी था) काले धन के उपर नोट बंदी रुपी औषधि को इन्होंने आम आदमी विरोधी करार दिया है। फलस्वरूप लगभग सारा विपक्ष मौसेरे भाइयों की तरह इकट्ठा हो गया है। आम लोगों के लिए इनके घड़ियाले आंसू रोके नही रुक रहे है। कोई सरकार के कदम को आपातकाल बता रहा है तो कोई दंगो की बात कर रहा है। शायद यही लोग दंगे करवा सकने के लिए समर्थ भी है। कुछ दल तो अपना काला धन बचाने के लिए नोट बंदी के निर्णय को वापस लेने की मांग कर रहे है। लोक सभा और राज्य सभा का कार्य किसी न किसी बहाने से ठप्प करवा दिया है। इनके शब्दों के मायाजाल के प्रदर्शन से ऐसा लग रहा है देश की सारी जनता से इनका खून का रिश्ता है। यदि यह सच्चाई होती तो आज सारा आम आदमी और देश विपक्ष के साथ खड़ा हुआ होता। लेकिन सच्चाई और ही है। असल में तो गहरा आघात और जोर का धक्का धीरे से सभी दलों पर पड़ा है। कई वर्षों की इन लोगों की व्यक्तिगत और अपने राजीतिक पक्षों का काला धन कबाड़ में बदल गया है। इसे न तो खाते बनता है और न उगलते बनता है। आश्चर्य की बात तो ये है कि इन राजनेताओं का ऐसा घनिष्ठ संबंध जनता के साथ होता तो जनता को ये दिन देखना नही पड़ा होता। जनता का राजनीतिक दलों ने अपनी राजीति की दुकान चलाने के लिए हमेशा उपयोग किया है। उनका नाता आम आदमी से एक मत (vote) के अलावा कुछ नही है। इस नाते को भुनाने के लिए राजनीतिक दल जाति, धर्म, गरीबी, भूख, हत्या,आत्महत्या, बलात्कार, मुफ्तखोरी का प्रोत्साहन, लालच, वोट की खरीद फरोक्त, जाल, साज, झूठ और नाना प्रकार के आडम्बर और यहाँ तक की सेना की शहादत और राष्ट्र विरोधी कृत्यों का भी प्रयोग करने से नही चुकते। आज तो ये लगता है कि ये चिल्लाने वाले सभी नेता और दल काले धन रखने वालों के असल में प्रवक्ता बन गए है। लगता है ये लोग आम आदमी और राष्द्रहीत की जगह काले धन कुबेरों के राजनेता बन गए है।
उपरोक्त विषंगतियाँ भारत जैसे प्रजातन्त्र मे सर्व विदित है। भारत का नागरिक आज काफी प्रबुद्ध हो गया है। इसीलिए कहते है कि ये तो पबिलक है, ये सब जानती है।
तब भी एक बार मान लेते है कि इन राजनेताओं को सचमुच आम आदमी की बहुत चिन्ता है।सचमुच ये लोग सत्ता और बेसुमार काले घन के लालची नही है। सचमुच ये लोग गरीब और आम आदमी के मांई - बाप है और इन्हें नोट बदलने के लिए कतार में खड़े देखकर गहन रुप से पीड़ा का अनुभव कर रहे है। लेकिन इस बात को मानने के बाद और भी गम्भीर पीड़ा ये हो रही है कि इन घड़ियाली आंसू बहाने वाले नेताओं में से एक भी नेता और दलों को अपनी गाढ़ी सफेद या काली कमाई से एक रुपया भी नोट बदलने के लिए कतारों में खड़े आम आदमी में बांटते नही देखा। रुपया बांटना तो दूर पानी पिलाने तक के लिए सामने नही आए और न तो कोई इन्तजाम किया। राहुल गांधी अपनी सुरक्षा फौज के साथ करोड़ों रुपए की गाड़ी में नोट बदलवाने जरुर आए लेकिन अपने चार हजार रुपयों में से एक पैसा भी कतार में खड़े व्यक्ति या किसी जरूरतमंद आदमी को नही दिया। केजरीवाल जो जनता का एक एक करोड़ रुपए किसी आत्महत्या पर राजनीति भूनाने के लिए ऐसे ही दे देते थे, उन्होंने एक रुपया भी कतार में खड़े व्यक्ति को या कतार में खड़े व्यक्ति की अकस्मात मौत पर उसके रिश्तेदारों को नही दिया । ममता, माया, लालू, शरद, सिताराम, गुलाम नबी, सिंधिया कोई भी कतार में खड़े आम आदमी को एक पैसा या पानी देते नही दिखे।हां, इन्ही आदमी को ढाल बनाकर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकना अपना स्वघोषित जन्म सिद्ध अधिकार और कर्तव्य बताते नही थकते। ये लोग या इनके प्रवक्ता पार्लियामेंट या टी. वी. पर आम आदमी के लिए खूब शोर मचाते है। यह इनके दोगले पन का सूचक है। इनके दांत हाथी के दांत जैसे खाने के और दिखाने के अलग अलग होते है।
ये तो पब्लिक है सब जानती है! इसलिए हे आम आदमी, तुम इन स्वार्थी राजनेताओं की झूठी मानव संवेदना, शब्दों के खोखले मायाजाल और धाड़ियाली आंसुओं पर कदापि मत जाओ। अपने राष्ट्रहित को पहिचानों।
जय हिन्द...
लगभग सारे विपक्ष के दिग्गज नेता गला फाड़ फाड़कर और चिल्ला चिल्ला कर आम आदमी के लिए अपनी संवेदना दिखा रहे है। कुछ लोगों की नोट बदलने की कतार में मौत हुई है। यह बड़े दुख की बात है। नोट बदलने की प्रक्रिया को सरल और युद्ध स्तर पर कार्यरत किया जाना चाहिए था। प्रबंधन को बेहतर बनाया जा सकता था। पर नोट बंदी राष्ट्र पर लगे काले धन रुपी कर्क रोग (cancer) पर कई उपचारों में से एक बहुत ही कारगर औषधि और एक संकेत भी है, इसमें संदेह नही। इस बात पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से शुरु में लगभग सभी राजनीतिक दलों ने सहमति दिखाई थी। कोई चारा भी नही था । यदि विरोध दिखाते तो यह प्रकट हो जाता कि झ्नके पास काला धन है। बाद में लम्बी लम्बी कतारों और कुछ दुखद मृत्युओं की आड़ मिल जाने से (शायद इसी का इन्तजार भी था) काले धन के उपर नोट बंदी रुपी औषधि को इन्होंने आम आदमी विरोधी करार दिया है। फलस्वरूप लगभग सारा विपक्ष मौसेरे भाइयों की तरह इकट्ठा हो गया है। आम लोगों के लिए इनके घड़ियाले आंसू रोके नही रुक रहे है। कोई सरकार के कदम को आपातकाल बता रहा है तो कोई दंगो की बात कर रहा है। शायद यही लोग दंगे करवा सकने के लिए समर्थ भी है। कुछ दल तो अपना काला धन बचाने के लिए नोट बंदी के निर्णय को वापस लेने की मांग कर रहे है। लोक सभा और राज्य सभा का कार्य किसी न किसी बहाने से ठप्प करवा दिया है। इनके शब्दों के मायाजाल के प्रदर्शन से ऐसा लग रहा है देश की सारी जनता से इनका खून का रिश्ता है। यदि यह सच्चाई होती तो आज सारा आम आदमी और देश विपक्ष के साथ खड़ा हुआ होता। लेकिन सच्चाई और ही है। असल में तो गहरा आघात और जोर का धक्का धीरे से सभी दलों पर पड़ा है। कई वर्षों की इन लोगों की व्यक्तिगत और अपने राजीतिक पक्षों का काला धन कबाड़ में बदल गया है। इसे न तो खाते बनता है और न उगलते बनता है। आश्चर्य की बात तो ये है कि इन राजनेताओं का ऐसा घनिष्ठ संबंध जनता के साथ होता तो जनता को ये दिन देखना नही पड़ा होता। जनता का राजनीतिक दलों ने अपनी राजीति की दुकान चलाने के लिए हमेशा उपयोग किया है। उनका नाता आम आदमी से एक मत (vote) के अलावा कुछ नही है। इस नाते को भुनाने के लिए राजनीतिक दल जाति, धर्म, गरीबी, भूख, हत्या,आत्महत्या, बलात्कार, मुफ्तखोरी का प्रोत्साहन, लालच, वोट की खरीद फरोक्त, जाल, साज, झूठ और नाना प्रकार के आडम्बर और यहाँ तक की सेना की शहादत और राष्ट्र विरोधी कृत्यों का भी प्रयोग करने से नही चुकते। आज तो ये लगता है कि ये चिल्लाने वाले सभी नेता और दल काले धन रखने वालों के असल में प्रवक्ता बन गए है। लगता है ये लोग आम आदमी और राष्द्रहीत की जगह काले धन कुबेरों के राजनेता बन गए है।
उपरोक्त विषंगतियाँ भारत जैसे प्रजातन्त्र मे सर्व विदित है। भारत का नागरिक आज काफी प्रबुद्ध हो गया है। इसीलिए कहते है कि ये तो पबिलक है, ये सब जानती है।
तब भी एक बार मान लेते है कि इन राजनेताओं को सचमुच आम आदमी की बहुत चिन्ता है।सचमुच ये लोग सत्ता और बेसुमार काले घन के लालची नही है। सचमुच ये लोग गरीब और आम आदमी के मांई - बाप है और इन्हें नोट बदलने के लिए कतार में खड़े देखकर गहन रुप से पीड़ा का अनुभव कर रहे है। लेकिन इस बात को मानने के बाद और भी गम्भीर पीड़ा ये हो रही है कि इन घड़ियाली आंसू बहाने वाले नेताओं में से एक भी नेता और दलों को अपनी गाढ़ी सफेद या काली कमाई से एक रुपया भी नोट बदलने के लिए कतारों में खड़े आम आदमी में बांटते नही देखा। रुपया बांटना तो दूर पानी पिलाने तक के लिए सामने नही आए और न तो कोई इन्तजाम किया। राहुल गांधी अपनी सुरक्षा फौज के साथ करोड़ों रुपए की गाड़ी में नोट बदलवाने जरुर आए लेकिन अपने चार हजार रुपयों में से एक पैसा भी कतार में खड़े व्यक्ति या किसी जरूरतमंद आदमी को नही दिया। केजरीवाल जो जनता का एक एक करोड़ रुपए किसी आत्महत्या पर राजनीति भूनाने के लिए ऐसे ही दे देते थे, उन्होंने एक रुपया भी कतार में खड़े व्यक्ति को या कतार में खड़े व्यक्ति की अकस्मात मौत पर उसके रिश्तेदारों को नही दिया । ममता, माया, लालू, शरद, सिताराम, गुलाम नबी, सिंधिया कोई भी कतार में खड़े आम आदमी को एक पैसा या पानी देते नही दिखे।हां, इन्ही आदमी को ढाल बनाकर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकना अपना स्वघोषित जन्म सिद्ध अधिकार और कर्तव्य बताते नही थकते। ये लोग या इनके प्रवक्ता पार्लियामेंट या टी. वी. पर आम आदमी के लिए खूब शोर मचाते है। यह इनके दोगले पन का सूचक है। इनके दांत हाथी के दांत जैसे खाने के और दिखाने के अलग अलग होते है।
ये तो पब्लिक है सब जानती है! इसलिए हे आम आदमी, तुम इन स्वार्थी राजनेताओं की झूठी मानव संवेदना, शब्दों के खोखले मायाजाल और धाड़ियाली आंसुओं पर कदापि मत जाओ। अपने राष्ट्रहित को पहिचानों।
जय हिन्द...
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