Sunday, 4 November 2018

अयोध्या में राम मंदिर

आज कांग्रेस और सारा विरोध पक्ष अयोध्या में राम मंदिर बनाने के सहयोगी दलों और विशेष तौर पर भारतीय जनता पार्टी को सुप्रीम कोर्ट के सम्मान और मर्यादा की याद दिला रहा है। बात सही है, प्रजातंत्र में संविधान सर्वोपरी है और इसका सम्मान करना हर भारतीय और राजनैतिक दलों का दायित्व ही नही बल्कि कर्तव्य है। लेकिन....

1. उस व्यवस्था में देश की जनता क्या करें जब किसी विवाद को सुलझाने के लिए सत्तर साल से भी ज्यादा लग जाते है। वह अदालत का कैसे सम्मान का दावा कर सकती है जो राम जन्म भूमि विवाद पर तारीख पे तारीख देती रहती है, जबकि कुछ विषयों पर आधी रात को भी दखाजें खोल देती है? जनता इस विराधाभास को कैसे मान लें?

2. अदालत और संविधान के सम्मान का विषय तब कहां चला गया था जब इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले को कांग्रेस पार्टी ने नही माना  जिसमें स्व. प्रधान मंत्री को अपदस्थ किया गया था और बाद में देश को इमरजेंसी के दौर का सामना करना पड़ा?

3. अदालत और संविधान के सम्मान का विषय तब कहां चला गया था जब शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कांग्रेस काल में पूर्व प्रधान मंत्री स्व. राजीव गांधी ने कोर्ट उलट दिया था?

गलत परिपाटी की नींव तो कांग्रेस ने रची। आज वह ज्ञान बांट रही है। लेकिन इसके अध्यक्ष आज हिन्दु वोट के लिए जनेउधारी शिवभक्त हिन्दु बनकर मंदिर मंदिर भटक रहे है, कल राम मंदिर बनाने का क्या विरोध कर पायेंगे? यह निर्णय उन्हें दलदल और खाई चुनने जैसी चुनौती से कम नही होगा।


भारतीय जनता पार्टी के लिए तो यह परीक्षा की घड़ी है ही। एक तरफ वह सत्ता में होने से उसके हाथ संविधान से बंधे है तो दुसरी तरफ हिन्दु समाज और संगठनों का उस पर राम मंदिर बनवाने के लिए  दबाव बढ़ता जा रहा है। तीसरी तरफ राजनीतिक दृष्टि से राम मंदिर उसके लिए हमेशा एक मुद्दा रहा है और लोकसभा चुनाव समीप होने से राम मंदिर का निर्माण उसके लिए फायदेमंद हो सकता है।

जो भी हो, इतिहास की विरासत तो वर्तमान को झेलना ही पड़ता है।

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