मै भारत ही नही विश्व के सभी धर्मों के अन्दर गर्भित परम सत्य का आदर करता हूं।सभी धर्मों के अन्दर अच्छाई की मूल भावना ही मेरा धर्म है। "एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति" की कल्पना को स्वीकार करते हुए मै यह मानता हूं कि सभी धर्मों ने देश, काल, और परिस्थिति के अनुसार एक ही सत्य को अलग अलग तरीके से उजागर और परिभाषित किया है। किसी अन्य पर अत्याचार या उसका शोषण कर अपना या अपने धर्म का हित सिद्ध करना न तो मेरा धर्म है और न ही मेरी प्रवृति है। मै एक हिन्दु हूं जो वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना का आदर और सम्मान करता है। स्वामी विवेकानन्द के द्वारा १८९३ में शिकागो धर्म संसद में कहा था, "मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते है"। स्वामी विवेकानन्दजी के इस कथन को मै अपना मूल मंत्र मानता हूं।
मुझे विश्वास है, हर एक सच्चा और अच्छा हिन्दु इन्हीं मान्यताओं को लेकर जीता है।
लेकिन आज मुझे बहुत दुख होता है जब अनेकों राजनेता अपने राजनैतिक लाभ और वर्ग विशेष को खुश करने के लिए "हिन्दु" शब्द को रोज घोर अपमानित कर रहे है। हिन्दु आतंकवाद, हिन्दु पाकिस्तान, अच्छा हिन्दु, बुरा हिन्दु, हिन्दु मंदिर में लड़किया छेड़ने जाते है आदि अनेकों शब्दों का उपयोग कर हिन्दुओं को अपमानित करते है। इनमें कई लोग हिन्दु ही है और कुछ लोगों की विडंबना यह है कि वोट के फायदे के लिए वे वेशभूषा बदल कर हिन्दु होने का ढोंग रचाते है। पता नही ऐसे बनावटी हिन्दु अच्छे या बुरे हिन्दुओं की श्रेणी में आते है। भारत एक हिन्दु बहुल देश है। क्या हिन्दुओं और हिन्दु धर्म को बदनाम और कमजोर करने की यह इन राजनेताओ की साजीश तो नही है? क्या जिस धर्म ने विश्व को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है, उसे कमजोर कर खत्म करने की कोई विश्व स्तरीय योजना कार्यरत है? यदि ऐसा नही तो ऐसे वक्तव्य क्यों आते है? क्यों हिन्दु धर्म की मूल भावना और अच्छाई को शिक्षा से १९४७ के बाद दूर रखा गया है। क्यों शिक्षा में गीता और रामायण जैसे हिन्दुओं के ग्रंथों को कोसों दूर रखा गया है। धर्म निरपेक्षेता के नाम पर इन ग्रंथों में निहित नैतिक मूल्यों को क्यों शिक्षा में स्थान नही दिया गया। क्यों भारत के आदि काल से चली आ रही नैतिक शिक्षा को खत्म किया गया है? आज हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक भगवान राम को काल्पनिक क्यों बताया जाता है? क्यों हिन्दु धर्म या हिन्दुओं की बात करना आज सांप्रदायिकता मानी जाती है और मुसलमान की बात करना धर्म निरपेक्षता माना जाता है?
ऐसे कई प्रश्न है जो एक सच्चे भारतीय और सच्चे हिन्दुओं के मन में अवश्य आते होंगे। इसके उत्तर हमें ही ढूंढना है। विचार करना है। कल क्या हो किसने देखा पर हिन्दुओं को जागरुक रहने की अवश्य जरुरत है। यदि हम नही संभले तो मुझे डर है कि कहीं हिन्दुओं की उदारता कल उन्हें ही न ले डूबे।
मुझे विश्वास है, हर एक सच्चा और अच्छा हिन्दु इन्हीं मान्यताओं को लेकर जीता है।
लेकिन आज मुझे बहुत दुख होता है जब अनेकों राजनेता अपने राजनैतिक लाभ और वर्ग विशेष को खुश करने के लिए "हिन्दु" शब्द को रोज घोर अपमानित कर रहे है। हिन्दु आतंकवाद, हिन्दु पाकिस्तान, अच्छा हिन्दु, बुरा हिन्दु, हिन्दु मंदिर में लड़किया छेड़ने जाते है आदि अनेकों शब्दों का उपयोग कर हिन्दुओं को अपमानित करते है। इनमें कई लोग हिन्दु ही है और कुछ लोगों की विडंबना यह है कि वोट के फायदे के लिए वे वेशभूषा बदल कर हिन्दु होने का ढोंग रचाते है। पता नही ऐसे बनावटी हिन्दु अच्छे या बुरे हिन्दुओं की श्रेणी में आते है। भारत एक हिन्दु बहुल देश है। क्या हिन्दुओं और हिन्दु धर्म को बदनाम और कमजोर करने की यह इन राजनेताओ की साजीश तो नही है? क्या जिस धर्म ने विश्व को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है, उसे कमजोर कर खत्म करने की कोई विश्व स्तरीय योजना कार्यरत है? यदि ऐसा नही तो ऐसे वक्तव्य क्यों आते है? क्यों हिन्दु धर्म की मूल भावना और अच्छाई को शिक्षा से १९४७ के बाद दूर रखा गया है। क्यों शिक्षा में गीता और रामायण जैसे हिन्दुओं के ग्रंथों को कोसों दूर रखा गया है। धर्म निरपेक्षेता के नाम पर इन ग्रंथों में निहित नैतिक मूल्यों को क्यों शिक्षा में स्थान नही दिया गया। क्यों भारत के आदि काल से चली आ रही नैतिक शिक्षा को खत्म किया गया है? आज हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक भगवान राम को काल्पनिक क्यों बताया जाता है? क्यों हिन्दु धर्म या हिन्दुओं की बात करना आज सांप्रदायिकता मानी जाती है और मुसलमान की बात करना धर्म निरपेक्षता माना जाता है?
ऐसे कई प्रश्न है जो एक सच्चे भारतीय और सच्चे हिन्दुओं के मन में अवश्य आते होंगे। इसके उत्तर हमें ही ढूंढना है। विचार करना है। कल क्या हो किसने देखा पर हिन्दुओं को जागरुक रहने की अवश्य जरुरत है। यदि हम नही संभले तो मुझे डर है कि कहीं हिन्दुओं की उदारता कल उन्हें ही न ले डूबे।
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