भारत में राम जन्म भूमि एक ऐतिहासिक हिन्दु-मुस्लिम विवाद रहा है। इतिहासकारों का कहना है कि सन् 1१५२८ में बाबर नामक बाहरी आक्रमक ने अयोध्या में राम मंदिर तोड़कर वहां एक मस्जिद बनाई थी, जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना गया। कहते है सन् १८५३ में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ था। तबसे किसी न किसी रुप में यह विवाद चलता रहा। स्वतंत्रता के बाद इस विवाद का राजनीतिकरण भी शुरु हो गया, जिसके पक्ष और विपक्ष में राजनीति करने से कोई भी राजनीतिक दल नही बचा। नवंबर १९८९ में कांग्रेस पार्टी के पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने हिंदु संगठनों को विवादित स्थल के पास शिलान्यास की इजाजत दे दी थी। कांग्रेस सरकार का ये फैसला हिंदू वोट बैंक को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए माना गया। बाद में भारतीय जनता पार्टी के लालकृष्ण अडवानी के नेत्रत्व में एक बड़े राम मंदीर आन्दोलन ने रुप लिया। ६ दिसम्बर १९९२ को हिन्दु कार्यकर्ताओं ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी, जिसमें भारतीय जनता पार्टी की प्रमुख भूमिका रही थी। परिणाम स्वरूप देश में व्यापक पैमाने पर दंगे हुए जिसमें करीब दो हजार लोगों की जानें गईं। मामला बाद में न्यायालय पहुंचा। लम्बे समय के बाद सन् २०१० में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया था जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया। इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी और बाद में तय हुआ था कि ५ दिसंबर २०१७ से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी।
उसके बाद तारीख पे तारीख का क्रम जारी है। सुना तो था कि आज से राम जन्म भूमि पर रोज सुनवाई होगी। पर रोज सुनवाई तो दूर, केवल दो मिनट में ही सिर्फ एक नई तारीख, वह भी जनवरी की दे दी गई।
कपिल सिब्बल ने झ्स विवाद को 2019 के बाद तक टालने की कोर्ट में अर्जी दी थी। क्या उस अर्जी की दिशा में ही परिस्थिति मोड़ नही ले रही है? क्या इस फैसले ने भारत की जनता को फिर से राम जन्म भूमि पर मंदीर बनाने और न बनाने के मुद्दे में पुनः उलझा तो नही दिया? क्या यह कोई षडयन्त्र तो नही है? क्या भारतियों को विकास के एजेंडा से दूर रखने का यह एक राजनैतिक प्रयास तो नही है?
यह भी सही है कि रोहिंग्यों/बांग्लादेशियों/पादरियों/आतंकियों/नक्सलियों के लिए कई प्रशान्त भूषण और कपिल सिब्बल जैसे वकील पैदा हो जाते है। क्या हिन्दुओं के मामलों में कोई प्रशान्त भूषण और कपिल सिब्बल नहीं है!
आज का फैसला हिन्दुओं के धीरज की परीक्षा जरूर लेगा। २०१९ के आम चुनाव को देखते हुए इस विवाद का पुनः राजीतिकरण भी होगा। ओवैसी जैसे लोग तुरन्त कूद पड़े और सरकार को धमकी दे रहे है कि यदि हिम्मत हो तो राम मंदिर बनाने पर अध्यादेश लेकर आए। इसके पहले कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा था कि अच्छे हिन्दु नही चाहते कि अयोध्या में राम मंदीर बने। नए नए जनेउधारी शिवभक्त हिन्दु राहुल गांधी क्या ऐसे अच्छे हिन्दु बन पायेंगे ? रही बात भारतीय जनता पार्टी की उसका तो राम मंदिर का निर्माण हमेशा एक मुद्दा रहा है। "कसम राम की खाते है, मंदिर वही बनायेंगे" यह उनका नारा रहा है। क्या वे २०१९ के पहले राम मंदीर बनाने के लिए अध्यादेश ला पायेंगे? उनकी भी यह परीक्षा की घड़ी होगी।
यदि हां, कोर्ट यदि जल्दी फैसला दे देता तो शायद इस विवाद के राजनीतिकरण से बच सकता था और शायद कोर्ट का फैसला पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों को स्वीकार्य हो सकता था।
लेकिन, शांतता! कोर्ट शुरु है।