हम सबका एक घर है, मेरा भी एक घर है। आपका भी है।
मेरे पड़ोसी का घर यदि उजड़ जाये तो उसे मै कुछ दिन के लिये तो अपने घर में शरण दे सकता हूं, उसे कुछ दिन खाना पीना दे सकता हूं।
लेकिन उसे हमेशा के लिए मेरे घर में पनाह देकर अपने घर की अर्थ व्यवस्था और सुख शांति बरबाद करना मेरे लिए संभव नही होगा। पूरी उम्मीद है, आपके लिये भी नही होगा।
मनोज कुमार की फिल्म 'उपकार' का प्रसिद्ध कलाकार प्राण द्वारा बोला गया वह संवाद याद आता है, जिसमें प्राण मनोज कुमार से बार बार कहता है; "भारत तू दुनिया की छोड़ पहले अपनी सोच. राम ने हर युग में जन्म लिया है लेकिन लक्षमण जैसा भाई दोबारा पैदा नहीं हुआ".
उक्त संवाद आज भी सत्य की कसौटी पर खरा, उपयुक्त और व्यावहारिक है।
भारत मेरा देश है, मेरा घर है। यहां भी बाहर से आये शरणार्थियों को कुछ दिन के लिए तो पनाह दी जा सकती है। मानवता का सही तकाजा भी यही है और स्वीकार्य भी है।
रोहिंग्य शरणार्थियों के विषय में भी यही बात अक्षरशः सत्य है। उन्हें कुछ दिन तो भारत में शरण दी जा सकती है। लेकिन उन्हें स्थायी रूप से बसाकर भारत का सदस्य, नागरिक बनाना, उन्हें वोटर कार्ड और आधार कार्ड देना भारत के मूल नागरिकों के साथ अन्याय और धोका है। भारत की अर्थ व्यवस्था और सुख शांति को बुरी तरह से प्रभावित कर उस पर इससे ज्यादा और कोई कुठाराघात नही हो सकता। इन्हें भारत में बसाने की बात की मांग करने वालों का अघोषित असली और मूल मुद्दा तो घिनौनी वोट बेंक की राजनीति का है। कुछ अल्प संख्यकों के वोटों को पक्का करने की गहरी साजीश मात्र है। एन आर सी का विरोध भी इसी साजीश का हिस्सा है। साजीश क्या यह भारत के विरुद्ध बहुत बड़ा षडयंत्र है।
रोहिंग्यों को भारत में बसाने की मांग करने वाले यदि इतने ही मानवता के पूजारी है तो वे इन्हें अपने अपने स्वयं के घरों में क्यों नही बसाते? उन्हें अपने स्वयं के घर का सदस्य क्यों नही बनाते? कश्मीर से निष्कासित अपने ही देश में शरणार्थी बनें कश्मीरी पंडितों के हक की जब बात आती है, तब तो उनकी बोलती बंद हो जाती है। उनके लिए केंडल मार्च नही निकलता और कोई सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे नही खटखटाता। इनके लिए एक भी प्रशांत भूषण आधी रात को सामने नही आता।
अंत में फिर...
भारत तू दुनिया की छोड़ पहले अपनी सोच. राम ने हर युग में जन्म लिया है लेकिन लक्षमण जैसा भाई दोबारा पैदा नहीं हुआ.
भारत ने 1947 में एक भाई पाकिस्तान पैदा किया। इसके घाव का दर्द और रक्तपात वह आज तक झेल रहा है। भारत, और कितने भाई पैदा करोगे? कितना दर्द और रक्तपात झेलोगे?
मेरे पड़ोसी का घर यदि उजड़ जाये तो उसे मै कुछ दिन के लिये तो अपने घर में शरण दे सकता हूं, उसे कुछ दिन खाना पीना दे सकता हूं।
लेकिन उसे हमेशा के लिए मेरे घर में पनाह देकर अपने घर की अर्थ व्यवस्था और सुख शांति बरबाद करना मेरे लिए संभव नही होगा। पूरी उम्मीद है, आपके लिये भी नही होगा।
मनोज कुमार की फिल्म 'उपकार' का प्रसिद्ध कलाकार प्राण द्वारा बोला गया वह संवाद याद आता है, जिसमें प्राण मनोज कुमार से बार बार कहता है; "भारत तू दुनिया की छोड़ पहले अपनी सोच. राम ने हर युग में जन्म लिया है लेकिन लक्षमण जैसा भाई दोबारा पैदा नहीं हुआ".
उक्त संवाद आज भी सत्य की कसौटी पर खरा, उपयुक्त और व्यावहारिक है।
भारत मेरा देश है, मेरा घर है। यहां भी बाहर से आये शरणार्थियों को कुछ दिन के लिए तो पनाह दी जा सकती है। मानवता का सही तकाजा भी यही है और स्वीकार्य भी है।
रोहिंग्य शरणार्थियों के विषय में भी यही बात अक्षरशः सत्य है। उन्हें कुछ दिन तो भारत में शरण दी जा सकती है। लेकिन उन्हें स्थायी रूप से बसाकर भारत का सदस्य, नागरिक बनाना, उन्हें वोटर कार्ड और आधार कार्ड देना भारत के मूल नागरिकों के साथ अन्याय और धोका है। भारत की अर्थ व्यवस्था और सुख शांति को बुरी तरह से प्रभावित कर उस पर इससे ज्यादा और कोई कुठाराघात नही हो सकता। इन्हें भारत में बसाने की बात की मांग करने वालों का अघोषित असली और मूल मुद्दा तो घिनौनी वोट बेंक की राजनीति का है। कुछ अल्प संख्यकों के वोटों को पक्का करने की गहरी साजीश मात्र है। एन आर सी का विरोध भी इसी साजीश का हिस्सा है। साजीश क्या यह भारत के विरुद्ध बहुत बड़ा षडयंत्र है।
रोहिंग्यों को भारत में बसाने की मांग करने वाले यदि इतने ही मानवता के पूजारी है तो वे इन्हें अपने अपने स्वयं के घरों में क्यों नही बसाते? उन्हें अपने स्वयं के घर का सदस्य क्यों नही बनाते? कश्मीर से निष्कासित अपने ही देश में शरणार्थी बनें कश्मीरी पंडितों के हक की जब बात आती है, तब तो उनकी बोलती बंद हो जाती है। उनके लिए केंडल मार्च नही निकलता और कोई सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे नही खटखटाता। इनके लिए एक भी प्रशांत भूषण आधी रात को सामने नही आता।
अंत में फिर...
भारत तू दुनिया की छोड़ पहले अपनी सोच. राम ने हर युग में जन्म लिया है लेकिन लक्षमण जैसा भाई दोबारा पैदा नहीं हुआ.
भारत ने 1947 में एक भाई पाकिस्तान पैदा किया। इसके घाव का दर्द और रक्तपात वह आज तक झेल रहा है। भारत, और कितने भाई पैदा करोगे? कितना दर्द और रक्तपात झेलोगे?
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