आज भारतवर्ष एवं विश्व का हिन्दु समुदाय महाबली पवन पुत्र हनुमान का जन्मोत्सव बड़े धुमधाम से मना रहा है। यह उत्सव हर वर्ष चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। हनुमान जामोत्सव असीम भक्ति, बल और दैवी शक्ति की पूजा का स्वरूप है। भगवान हनुमान जैसी अपने स्वामी के प्रति निर्मल भक्ति और कही दिखाई नही देती। हनुमानजी को जानने के लिए भगवान राम को जानना अनिवार्य हो जाता है। भगवान राम के वनवास के समय जब सीताजी का दुष्ट रावण अपहरण कर लंका ले गया था, उस मुसीबत की घड़ी में महाबली हनुमान ने न केवल सीता के शोध के लिए भगवान राम की मदद की बल्कि रामेश्वरम से लंका के बीच सेतु बनाने से लेकर रावण के विरुद्ध युद्ध में संजीवनी पर्वत को लाकर मरणावस्थ लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की।
इस दिन सुबह से ही मंदिरों में हनुमान जी की पूजा अर्चना की जाती है। उनके माथे पर लाल तिलक लगाया जाता है। लोगों को घरों में भी पूजा के रुप में हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए देखा जा सकता है। ब्रम्हचर्य का पालन करने वाले और कुश्ती दंगल में रुचि रखने वाले बलशाली हनुमानजी की विशेष पूजा अर्चना करते है। भगवान हनुमान को भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है।
राम के प्रति हनुमानजी का प्रेम और भक्ति अटूट थी। इसीलए हर बार यदि कही सीता राम की तस्वीर दिखने में आती है, तब उनके चरणों में उनका सेवक हनुमान अवश्य दिखाई देता है। एक बार की घटना है जब सरल स्वभाव के भक्त हनुमान ने माँ सीता को श्रंगार करते हुए अपने माथे और मांग में सिंदुर लगाते हुए देख लिया। हनुमानजी ने जब इसका कारण पूछा तो सीता माँ ने उत्तर दिया कि यह सिंदुर उनका अपने पति भगवान राम के प्रति प्रेम और भक्ति का द्योतक है। बस फिर क्या था, हनुमानजी ने अपने चेहरे और पूरे शरीर पर सिंदुर लगा लिया। उनका प्रेम और भक्ति सीता माँ के प्रेम और भक्ति से कम थोड़े ही था। इसलिए ही हनुमानजी की प्रतिमा आज भी पूरी सिंदुर से ढकी हुई ही दर्शायी जाती है। और एक कहानी इसी प्रकार की है। एक बार माता सीता ने प्रेम वश हनुमान जी को एक बहुत ही कीमती सोने का हार भेंट में देने की सोची। हनुमान जी हार के हर मणी को तोड़ तोड़ कर देखने लगे लेकिन मणियों में उन्हें भगवान राम कही नजर नही आये। इस पर उन्होंने वह हार फेंक दिया। इस बात से माता सीता गुस्सा हो गईं । तब हनुमानजी ने अपनी छाती चीर का उन्हें उसमें बसी प्रभु राम की छवि दिखाई और कहा कि उनके लिए इससे ज्यादा कुछ अनमोल नहीं।
राम के प्रति हनुमानजी का प्रेम और भक्ति अटूट थी। इसीलए हर बार यदि कही सीता राम की तस्वीर दिखने में आती है, तब उनके चरणों में उनका सेवक हनुमान अवश्य दिखाई देता है। एक बार की घटना है जब सरल स्वभाव के भक्त हनुमान ने माँ सीता को श्रंगार करते हुए अपने माथे और मांग में सिंदुर लगाते हुए देख लिया। हनुमानजी ने जब इसका कारण पूछा तो सीता माँ ने उत्तर दिया कि यह सिंदुर उनका अपने पति भगवान राम के प्रति प्रेम और भक्ति का द्योतक है। बस फिर क्या था, हनुमानजी ने अपने चेहरे और पूरे शरीर पर सिंदुर लगा लिया। उनका प्रेम और भक्ति सीता माँ के प्रेम और भक्ति से कम थोड़े ही था। इसलिए ही हनुमानजी की प्रतिमा आज भी पूरी सिंदुर से ढकी हुई ही दर्शायी जाती है। और एक कहानी इसी प्रकार की है। एक बार माता सीता ने प्रेम वश हनुमान जी को एक बहुत ही कीमती सोने का हार भेंट में देने की सोची। हनुमान जी हार के हर मणी को तोड़ तोड़ कर देखने लगे लेकिन मणियों में उन्हें भगवान राम कही नजर नही आये। इस पर उन्होंने वह हार फेंक दिया। इस बात से माता सीता गुस्सा हो गईं । तब हनुमानजी ने अपनी छाती चीर का उन्हें उसमें बसी प्रभु राम की छवि दिखाई और कहा कि उनके लिए इससे ज्यादा कुछ अनमोल नहीं।
आइए, महाबलशाली, भगवान राम के परम भक्त हनुमानजी को नमन कर उनका जन्मोत्सव आनन्द और उत्साह से मनाए।
हनुमान भक्तों का कहना है कि हनुमानजी की पूजा अर्चना और हनुमान चालीसा के पाठ से भय, शंका और चिन्ता से मुक्ति मिलती है और नई उर्जा, विश्वास और शांति की प्राप्ति होती है। आओ , सब मिलकर हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करें।
हनूमान चालीसा....
॥दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥
॥चौपाई॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरङ्गी ।
कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥
कञ्चन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥
सङ्कर सुवन केसरीनन्दन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥
लाय सञ्जीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥
रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥
सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥
तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब सुख लहै तुह्मारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥
आपन तेज सह्मारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥
सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
चारों जुग परताप तुह्मारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुह्मरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
तुह्मरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥
॥दोहा॥
पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥
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