Thursday, 31 August 2017

हम एक है, हम एक ही है और ईश्वर भी एक ही है

धर्म,
हर युग में,
बदल सकता है,
सत्य नही!

मान्यताएं,
हर युग में,
बदल सकती है,
सत्य नही!

रीति-रिवाज,
हर युग में,
बदल सकते है,
सत्य नही!

धर्म और मान्यताए,
रीति और रिवाज,
मानव निर्मित है,
स्थायी नही,
परिवर्तनशील है,
परिवर्तित होते रहते है!

आपने और मैने,
आपके धर्म गुरुओं ने,
मेरे धर्म गुरुओं ने,
अपनी सहूलियत,
अपनी मान्यताओं,
के आधार पर,
आपके धर्म को,
मेरे धर्म को,
रचा है, रुप दिया है,
प्रचारित किया है,
प्रसारित किया है!

आपका धर्म,
आपकी मान्यताएं,
आपके रीति-रिवाज,
मेरे धर्म और मेरी मान्यताओं से,
मेरे रीति-रिवाजों से,
अलग हो सकते है!
हमारे रास्ते अलग हो सकते है,
हमारी नियति एक ही है!

आपके पूजन,
और प्रार्थना की रीत,
मेरे पूजन,
और मेरी प्रार्थना की रीत से,
अलग हो सकती है!
हमारा स्तव्य एक ही है!

आपका अस्तित्व,
मेरे अस्तित्व से,
भिन्न नही!
आपका जनक,
और मेरा जनक,
भिन्न नही!
मेरा ईश्वर, आपका खुदा,
मेरा ख़ुदा, आपका ईशा,
मेरा ईशा, आपका नानक,
मेरा नानक, आपका ईश्वर,
एक है, एक ही है,
भिन्न नही!

यह आप भी जानते है,
मै भी जानता हूं!
पर कहने से,
आप भी झिझकते है,
कहने से,
मै भी झिझकता हूँ!

आप यह भी जानते है,
मै भी जानता हूँ,
आपका आना-जाना,
मेरे आने-जाने से,
भिन्न नही!

आप मुझसे,
मै आपसे,
जमीनी तौर पर
एक है, एक ही है,
भिन्न नही!

सत्य यही है,
आप और मै,
मै और आप,
एक है, एक ही है,
भिन्न नही!

हम दोनों,
एक ही सत्य की,
उत्पत्ति है,
प्रमाण है,
एक ही केन्द्र की,
निधि है,
परिधि है
यही सत्य है,
असत्य नही!

हम दोनों,
एक ही माला के,
मोती है,
एक ही प्रकाश की,
ज्याति है!
यही सत्य है,
मिथ्या नही!

हम जुदा नही,
हम एक ही है!
हम दो शरीर सही,
पर एक ही सत्य,
एक ही महाप्राण के,
प्रमाण है,
अंश है, अंकुर है,
एक ही प्राण है,
यही सत्य है,
यही सत्य है,
यही सत्य है,
यही आपका,
और यही मेरा,
परम धर्म है!

यह सत्य ही,
यह परम धर्म ही,
चीर स्थाई,
अविनाशी है!
यही सत्य है,
असत्य नही!
यह सत्य ही,
ईश्वर है!
आपका-मेरा और सबका,
यह सत्य ही ईश्वर है!

मै इसे राम कहूं,
रहीम कहूँ,
ईसा कहूं,
नानक कहूं,
इससे अन्तर नही!

मै अपने को हिन्दु कहूं,
मुसलमान कहूं,
ईसाई कहूं,
सिख कहूं,
यह उपरी चोला है,
ऑंखों का धोका है,
इससे कोई फरक नही!

हम सबका सत्य,
हम सबके नाथ,
हम सबके स्वामी,
हम सबके पालनहार,
एक ही है,
जुदा नही!

हमारी शारीरिक,
धार्मिक,
कार्मिक,
भिन्नताएं है,
पर हम सबके महाप्राण,
हमारे प्राणदाता,
हमारे पालक,
हमारे विधाता,
एक ही है,
जुदा नही!

हम अन्तोतोगत्वा,
एक ही हैं!
हम एक ही है!
हम एक ही है!!

सत्य ही ईश्वर है!
सत्य ही शिव है!
सत्य ही सुन्दर है!

सत्य मेव जयते!

Wednesday, 30 August 2017

मेहनत करें इन्सान तो क्या हो नही सकता?

गांव में थी पानी की समस्या, तो श्यामलाल ने 27 साल में खोद डाला तालाब

भागीरथ को कौन नहीं जानता, जिनके अथक प्रयासों से गंगा धरती पर आई थी। कुछ इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी एक ऐसा भागीरथ है, जिसने पानी को बचाने के लिए अपने दमखम पर तालाब खोद दिया। हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के श्यामलाल की, जो कोरिया जिले के नगर पालिक निगम चिरमिरी क्षेत्र के निवासी हैं।

अपने क्षेत्र में पानी की समस्या को देखते हुए श्यामलाल ने वह कर दिखाया, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। श्यामलाल ने अकेले अपने दम पर एक तालाब खोद डाला। ये तालाब लोगों के आम लोगों के निस्तार के काम तो आ ही रहा है, वहीं मवेशियों के लिए भी यह जीवनदाई साबित हो रहा है।

नगर पालिक निगम चिरमिरी का साजापहाड़ क्षेत्र कई प्रकार की समस्याओं से जूझ रहा है। इसी गांव में रहने श्यामलाल ने जब देखा कि गांव में पानी की काफी किल्लत है, खासकर जब वह जंगल में मवेशी चराने के लिए जाता तो मवेशियों को भी पीने का पानी नहीं मिल पाता। तब महज पन्द्रह साल की उम्र में श्यामलाल ने इस क्षेत्र में एक तालाब खोदने का संकल्प लिया। वह रोज जंगल में मवेशी चराने के लिए आता और उसके साथ ही उसने तालाब निर्माण भी शुरू कर दिया।

आखिरकार 27 सालों की मेहनत के बाद श्यामलाल ने अपनी मंजिल हासिल कर ली। श्यामलाल ने साजा पहाड़ गांव में एक तालाब का निर्माण अकेले ही कर डाला।



श्यामलाल का कहना है कि उसने यह सब गांव के लिए किया है। 27 साल की मेहनत के बाद अब इसका लाभ लोगों को मिलेगा। श्यामलाल ने कहा कि इन 27 सालों में किसी ने भी उसकी सुध नहीं ली। अब खुद विधायक उसके काम को देखने यहां पहुंचे हैं। देर ही सही कोई तो यहां पहुंचा।

(सोसल मिडिया के सौजन्य से)

Monday, 28 August 2017

संत रविदास और उनके रत्न जड़ित कंगन


संत कुलभूषण कवि रविदास भक्ति काल के प्रमुख संतो में से एक माने जाते है।वे उन महान सन्तों में अग्रणी थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। उनके सरल स्वभाव, कर्म परायणता और परमेश्वर में अटूट विश्वास ने उन्हें महान सन्तों की श्रेणी में अग्रणी बना दिया। उनके विषय में एक शिक्षाप्रद कहानी जो एक सोसल मिडया पर काफी प्रचलित है, नीचे प्रस्तुत की जा रही है।

हमेशा की तरह सिमरन करते हुए अपने कार्य में तत्लीन रहने वाले भक्त रविदास जी आज भी अपने जूती गांठने के कार्य में ततलीन थे

अरे,,मेरी जूती थोड़ी टूट गई है,,इसे गाँठ दो,,राह गुजरते एक पथिक ने भगत रविदास जी से थोड़ा दूर खड़े हो कर कहा

आप कहाँ जा रहे हैं श्रीमान? भगत जी ने पथिक से पूछा

मैं माँ गंगा स्नान करने जा रहा हूँ,,तुम चमड़े का काम करने वाले क्या जानो गंगा जी के दर्शन और स्नान का महातम,,,

सत्य कहा श्रीमान,,हम मलिन और नीच लोगो के स्पर्श से पावन गंगा भी अपवित्र हो जाएगी,,आप भाग्यशाली हैं जो तीर्थ स्नान को जा रहे हैं,,भगत जी ने कहा

सही कहा,,तीर्थ स्नान और दान का बहुत महातम है,,ये लो अपनी मेहनत की कीमत एक कोड़ी,, और मेरी जूती मेरी तरफ फेंको

आप मेरी तरफ कौड़ी को न फेंकिए,, ये कौड़ी आप गंगा माँ को गरीब रविदास की भेंट कह कर अर्पित कर देना

पथिक अपने राह चला गया,,रविदास पुनः अपने कार्य में लग गए

अपने स्नान ध्यान के बाद जब पथिक गंगा दर्शन कर घर वापिस चलने लगा तो उसे ध्यान आया

अरे उस शुद्र की कौड़ी तो गंगा जी के अर्पण की नही,,नाहक उसका भार मेरे सिर पर रह जाता

ऐसा कह कर उसने कौड़ी निकाली और गंगा जी के तट पर खड़ा हो कर कहा

हे माँ गंगा,,रविदास की ये भेंट स्वीकार करो

तभी गंगा जी से एक हाथ प्रगट हुआ और आवाज आई

लाओ भगत रविदास जी की भेंट मेरे हाथ पर रख दो

हक्के बक्के से खड़े पथिक ने वो कौड़ी उस हाथ पर रख दी

हैरान पथिक अभी वापिस चलने को था कि पुनः उसे वही स्वर सुनाई दिया

पथिक,,ये भेंट मेरी तरफ से भगत रविदास जी को देना

गंगा जी के हाथ में एक रत्न जड़ित कंगन था,,

हैरान पथिक वो कंगन ले कर अपने गंतव्य को चलना शुरू किया

उसके मन में ख्याल आया

रविदास को क्या मालूम,,कि माँ गंगा ने उसके लिए कोई भेंट दी है,,अगर मैं ये बेशकीमती कंगन यहाँ रानी को भेंट दूँ तो राजा मुझे धन दौलत से मालामाल कर देगा

ऐसा सोच उसने राजदरबार में जा कर वो कंगन रानी को भेंट कर दिया,,रानी वो कंगन देख कर बहुत खुश हुई,,अभी वो अपने को मिलने वाले इनाम की बात सोच ही रहा था कि रानी ने अपने दूसरे हाथ के लिए भी एक समान दूसरे कंगन की फरमाइश राजा से कर दी

पथिक,,हमे इसी तरह का दूसरा कंगन चाहिए,,राजा बोला

आप अपने राज जौहरी से ऐसा ही दूसरा कंगन बनवा लें,,पथिक बोला

पर इस में जड़े रत्न बहुत दुर्लभ हैं,,ये हमारे राजकोष में नहीं हैं,,अगर पथिक इस एक कंगन का निर्माता है तो दूसरा भी बना सकता है,,,,राजजोहरी ने राजा से कहा

पथिक अगर तुम ने हमें दूसरा कंगन ला कर नहीं दिया तो हम  तुम्हे मृत्युदण्ड देंगे,,राजा गुर्राया

पथिक की आँखों से आंसू बहने   लगे

भगत रविदास से किया गया छल उसके प्राण लेने वाला था

पथिक ने सारा सत्य राजा को कह सुनाया और राजा से कहा

केवल एक भगत रविदास जी ही हैं जो गंगा माँ से दूसरा कंगन ले कर राजा को दे सकते हैं

राजा पथिक के साथ भगत रविदास जी के पास आया

भगत जी सदा की तरह सिमरन करते हुए अपने दैनिक कार्य में तत्तलीन थे

पथिक ने दौड़ कर उनके चरण पकड़ लिए और उनसे अपने जीवन रक्षण की प्रार्थना की

भगत रविदास जी ने राजा को निकट बुलाया और पथिक को जीवनदान देने की विनती की

राजा ने जब पथिक के जीवन के बदले में दूसरा कंगन माँगा

तो भगत रविदास जी ने अपनी नीचे बिछाई चटाई को हटा कर राजा से कहा

आओ और अपना दूसरा कंगन पहचान लो

राजा जब निकट गया तो क्या देखता है

भगत जी के निकट जमीन पारदर्शी हो गई है और उस में बेशकीमती रत्न जड़ित असंख्य ही कंगन की धारा अविरल बह रही है

पथिक और राजा भगत रविदास जी के चरणों में गिर गए और उनसे क्षमा याचना की

प्रभु के रंग में रंगे महात्मा लोग,,जो अपने दैनिक कार्य करते हुए भी प्रभु का नाम सिमरन करते हैं उन से पवित्र और बड़ा कोई तीर्थ नही,,,

उन्हें तीर्थ वेद शास्त्र क्या व्यख्यान करेंगे उनका जीवन ही वेद है उनके दर्शन ही तीर्थ हैं

गुरबाणी में कथन है

साध की महिमा बेद न जानै
जेता सुनह,, तेता  बख्यान्ही।
। सतनाम वाहेगुरू ।

Sunday, 27 August 2017

इन्हें बुद्धू जनता अच्छी लगती है!

ढोंगी बाबाओं और नेताओं की प्रथम पसंद का जड़ कारण विश्वेषण ..

आखिर भारत की जनता ढोंगी बाबाओं के चक्कर में कैसे आ जाती है,  यह एक सोचने का विषय है. लोगों में क्या आत्मविश्वास की इतनी कमी है कि वह किसी अपनी व्यक्तिगत  समस्या के समाधान के लिए ढोंगी बाबाओं के चक्कर में आ जाते हैं. ये ढोंगी बाबा भोले अनपढ़ और अंधविश्वासी जनता का नाजायज फायदा उठाते हैं. पाखण्ड और फरेब के द्वारा इस तरह के कुछ बाबा लोग अथाह संपति संचित कर लेते है और अपने लाखों समर्थकों के साथ एक ताकतवर साम्राज्य बनाने में सफल हो जाते है। इनका साम्राज्य और प्रभाव देखकर बड़े बड़े नेता लोग भी राजीतिक फायदा उठाने के लिए इनके पास अपना माथा टेंकने पहुंच जाते है और अपने वोट बेंक के खोने के डर से कायर बनकर इनके घिनौने गुनाह अनदेखा करने लगते है। इस तरह के आँख बन्द करने वाले नेता लगभग सभी राजनीतिक दलों में पाए जाते है। उनकी प्राथमिक नीति "राष्द्र प्रथम" से हटकर "वोट प्रथम" में बदल जाती है।

कुछ छोटे स्तर के बाबा लोग भी अपनी छोटी स्तर की सत्ता बनाकर  शिकार की तलाश में घुमते फिरते रहते है और वे भी भोले और डरपोक लोगों के शोषण में लग जाते है। इसी तरह कुछ ज्योतिषी भी अपना धंधा शुरु कर देते है। कोई तोता लेकर बैठ जाता है तो कोई किताब। कोई नग और अंगुठी बेचता है तो कोई ताबीज। इन महानुभावों को अपने कल के भोजन का पता नही होता लेकिन ये आपके भविष्य की घटनाओं का बखान करने में उस्ताद होते है। आपका विश्वास पाने के लिए आपकी कुछ अच्छाई बता कर तारीफ करेंगे। आपकी आने वाली समस्याओं का हल इनके पास होता हैं। पूजा पाठ, अंगुठी पहनना इसमें विषेश स्थान रहते है। पैसों के हिसाब से ही इनका कम ज्यादा प्रभाव बताते है। इनके शिकार केवल महिलाएं ही नही होती बल्कि अच्छे अच्छे पढ़े लिखे लोग भी इन बाबाओं और भविष्य वक्ताओं के झांसे में आ जाते है। राजनेता लोग भी महा डरपोक होते है।अपनी सत्ता को बचाने के लिए कर्म काण्ड करते रहते है और बाबाओं के चेले बन जाते है।

इन सब बातों के पीछे भारतियों की मानसिक अपरिपक्वता जिम्मेदार है। इसी अपरिपक्वता का नेताओं ने भी खूब फायदा लिया है और लेते जा रहे है। नेताओं के लिए नागरिकों का अनपढ़ और गरीब होना, उनका भोला और अपरिपक्व होना बड़े फायदे की बात होती है, जिससे उन्हें एक वोट बेंक के रुप में उपयोग में लाया जा सकें। उन्हें कभी धर्म के नाम पर, कभी जाति के नाम पर और कभी आस्था के नाम पर बांट कर उनका वोट अपनी झोली में डाला जा सकें। इसमें भारत का सदियों तक गुलाम रहना, बाहर के लोगों का भारत में आकर उसे लुटना और उन पर अत्याचार करना इत्यादि घटनाओं का बड़ा हाथ है। यह क्रम देश की आजादी के बाद भी फलता फूलता रहा है। इसी क्रम के कारण कुछ ढोंगी राजनेताओं के साथ साथ कुछ ढोंगी बाबाओं ने भी अपनी दुकानें खोल रखी है। इसी के परिणामस्वरुप पंचकुला जैसे काण्ड होते रहते है, और आगे भी होते रहेंगे, कभी आस्था के नाम पर और कभी दलगत राजनीति के नाम पर। होते रहेंगे तब तक जब तक भारत की जनता पूर्ण रुप से सुशिक्षित, सुखी, सम्पन्न और परिपक्व मानसिकता की धनी न हो  जाती।

विडंबना यही है कि ऐसा समय दुर्भाग्यवश बहुत दूर दिखता है।

Saturday, 26 August 2017

Ganesha, the Vighna Harta, the Remover of Obstacles

Whenever a Hindu in India or anywhere in the world embarks on an important task, he prays to Lord Ganesha and usually chants; “Om Shri Ganeshay Namah’. Lord Ganesha is also called “Vighna Harta”, remover of obstacles in life. By praying, the Hindus invoke the Lord Ganesha to bless the devotee with wisdom, intellect and help him/her in removing obstacles from the path. Many outsiders call Lord Ganesha as an Elephant God as He is shown with the head of an elephant with a long trunk.

The Ganesha festival was widely celebrated publically in Pune, Maharashtra during the Chhatrapati Shivji era (1630-1680). However, after the advent of British rule in India the festival lost its state patronage and the festival took the turn of private family celebrations at homes in Maharashtra. It was reviewed by the freedom fighter and social reformer, Lokmanya Bal Gangadhar Tilak. Tilak also used the frestivals to bridge the caste and class barrier is the society and unite Indian to challenge the British rule.

There are many mythological stories about how Ganesha got an elephant head. As per one of the story, Goddess Parvati, Lord Shiva’s wife was envied Nandi, the Bull of Lord Shiva as the Nandi was very faithful to Lord Shiva. Goddess Parvati had none like Nandi. So out of jealousy, before going to bath, she created a turmeric Ganesha, declared him as her loyal son and breathed him into life. She posted Ganesha on a guard duty at the door and ordered him not to allow anybody inside as she would take a bath. While Parvati was bathing, Lord Shiva came home but He was stopped by Ganesha to entered the home as ordered by Parvati. Shiva was very furious with Ganesha and out of anger, severed Ganesha’s head killing Ganesha instatnly. On learning this, Parvati was enraged by the insult and decided to destroy the entire creation. The creator Brahma got worried by the sudden development and pleaded with Parvati to reconsider her decision. Parvati agreed but she put two conditions before; that Ganesha should be brought back to life and he should be worshipped by the people before all other Gods. Lord Shiva was cooled down by this time and He agreed to Parvati’s conditions. Shiva ordered Brahma to get a head of the first creatures that is lying with its head facing the north direction to put on Ganesha’s body. Brahma returned soon with a head of a strong elephant which the Lord Shiva attached to Ganesha’s body and brought it back to life. Lord Shiva declared Ganesha as His own son and foremost among the Gods to be worshipped before all Gods. Ganesha is also called the leader of ganas (people), Ganapati also.

Thus ganesha God a prominent place among the Hindu diety and is well worshipped globally as the God of wisdom and remover of obstacles.

Everybody marvels the beauty of Ganesha idols and deeply worship Ganesha during the Ganesh Festival in India and globally also. The festival falls in the month of August-September; on the fourth day of Hindu luni-solar calendar month of Bhadrapada. It commences with idol installation on Ganesha Chaturthi (also known as Vinayaka Chaturthi) and the festivities last usually for ten days or shorter. Many people install the idols at their home and though the festival is very popular in Maharashtra, it is finding its footprints all over the country and abroad. There are many installation at public pandals especially erected for community puja (worship).


The curl of the trunk of Ganesha’s idol has its own significance. The trunk curling on the right side is supposed to be fierier and aggressive while the curling on the right side is indicates calmer side of Ganesha. The fiery side of the Ganesha idol demands strict worship lasting for ten days whereas the worship of the calmer version is easy and relaxed and can last for lesser duration.

Determination Makes all the difference

She couldn’t see her husband dying in her arms. She felt helpless and sorrowful.
Courageously, she begged her neighbours, relatives and every possible person she could and gathered a small amount and left for Baramati for the further tests of her husband.
Doctor moved her husband in the check-up zone, she discreetly sat outside the room with the teary eyes, praying god to save the only wisdom in her life. Doctor came out of the check-up ward, her eyes lit, eagerly waiting to hear the well-being of her love. But Fate had some other story written for them, Doctor advised further costly tests and medications, which were going to cost them a bounty. Lataji’s world collapsed with her nowhere to go, no money to treat her husband. Her world was shattered, her heart ached, overwhelmed by emotions, she cried with helplessness.
They came out of the hospital heavy-heartedly, stopped by nearby samosawala, had two samosas on piece of newspaper, her eyes stopped on the bold Marathi headline on the newspaper, her eyes lit, heart skipped. The headline was about the ‘Baramati Marathon and it’s prize money’. She was excited and all sorts of thoughts flooded her mind.
Next day, Baramati Marathon was about to commence, everyone geared up in their sports shoes, cozy shorts and tracks, sweat absorbing tees. And there she comes, the 67 year old Lata Bhagwan Khare, wearing torn saree (lugda), bare footed, tears in her eyes. She argued with the organizers, they weren’t ready to let her participate in the marathon, she pleaded, she begged, she convinced them to approve her participation.
Marathon started, she hitched her saree just above her ankles, she ran like a wizard, like a 16 year old teen, she didn’t think of anything else, she could just see her husband’s agony and the winning amount in front of her eyes ahead. She didn’t care about the hard hitting rocks and pebbles on her way, her feet bled, but she ran and ran. She won the marathon and was awarded the prize amount. It meant a life to her, she was going to see her husband live. Crowd cheered her, streets of Baramati clapped for her. People were flabbergasted, they saluted her and applauded her.
She collected the winning amount and made sure her husband received the proper medication. This is love, this is devotion. She didn’t blink an eye, she never thought about how she is going to win the marathon, how is she going to run barefooted, how’ll she survive. She only ran with one motive, to save her husband.
I salute Lata Bhagwan Khare, for her courage and fortitude. In the world full of excuses, you just proved to be an icon.
* As received in a social media group

Friday, 25 August 2017

हरयाणा की कल की मानव निर्मित दुर्घटनाएं

हरयाणा की कल की मानव निर्मित दुर्घटनाएं....
घोर अनर्थ और अधर्म की पराकाष्ठा....
सरकार मूक दर्शक....

किसी के पास यदि लाठी और पैसा है (किस तरह से यह कमाया है अलग विषय है) तो देश में वह कुछ भी कर सकता है? प्रशासन के समय पर जागने से 30 सेअधिक लोगों की जान गई है और भारत की किमती संपदा में आग लगा दी गई है। इस भीड़तंत्र के लिए लोगों की जान और भारतीय संपत्ति की कोई किमत नही है! और भारत महान में यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि एक व्यक्ति को जिसे वह स्वयं और कुछ लोग गॉडमेन और धर्म गुरु कहते है, उसे बलात्कार जैसे अधर्म के आरोप में कानून ने दोषी करार दिया। सरकार तीन दिन से मूक दर्शक बनी हुई थी। 1.5 लाख से उपर हथियारों से सुसज्जित भीड़ को इकट्ठा होने दिया गया है। क्या सब जानबूझ किया गया है और हालत बिगड़ने दी गई है?


सारा काण्ड क्या सरकार के मुंह पर यह एक करारा तमाचा नही है? प्रशासन इतना लचर और मजबूर क्यों है? राज्य और केन्द्र में एक ही दल राज कर रही है। क्या यहाँ भी कोई सांठ गाठ या वोट बेंक है? भारतीय जनता पार्टी, the party with a difference से लोगों को बहुत उम्मीदें है लेकिन ये तो अच्छे दिन या सुशासन वाली बात नही है! जनता तथाकथित देश भक्त सरकार से घटना की निन्दा या कड़ी निन्दा नही, हरयाणा सरकार की असफलता पर तुरन्त कठोर कार्यवाही चाहती है। 

भारत को एक ऐसा कमजोर जनतंत्र मत होने दो जहाँ पर एक भीड़ भयानक तबाही मचा दे।

Tuesday, 22 August 2017

Who is true secular ?

Who is true secular ?
Who is true human being?

Congress Raj -Rajiv Gandhi legacy:

The Shah Bano case : : A poor 62 year old Muslim woman went to the court seeking Rs. 200/month as maintenance from her husband, for supporting her 5 children after the lawyer husband deserted her, uttering tripple talaq.  Both the High Court and Supreme Court had ruled in the woman's favor.
It was a win for Shah Bano but Rajiv Gandhi turned it into a defeat. The then  Prime Minister Rajiv Gandhi  overruled courts with a new legislation & took away the basic rights of Muslim women in India to appease conservative clergy. 

It was sheer vote bank politics & appeasement by the Congress government headed by Rajiv Gandhi.

Still the Congress claims to be the greatest secular party!

NDA Raj::

Narendra Modi is the first Prime Minister of India to talk about the sufferings of Muslim  women in his address to the nation on the last independence day and at other forums too. He opposed the inhuman practice of triple talaq and committed to empower Muslim women. The government has also submitted it's legal views to the supreme court in proper perspectives to stop the evil practice. In the historic judgement, yesterday, the Supreme Court struck down the triple talaq terming it “unconstitutional" and asked the government of India to frame laws.
The same greated secular Congress party and it's supporters call Modi a communal leader.

Now people have to decide.....

Who is true secular ?
Who is true human being?

Another evil, the practice of Halala should also go. Many people may not be clear about Halala. As per Wikipedia, Halala is an Islamic marriage practiced primarily by certain sects of Sunni Muslims, which involves a female divorcee marrying someone else, consummating the marriage and then getting a divorce in order to make it allowable to remarry her previous husband.

It is barbaric, discriminatory and inhuman to the lady going through Halala? This lady can be anybody's daughter, mother or sister and  above all she is a human being and not a commodity. Why the practice of Halala should not be stopped immediatly through? And simultaneously, the dreaded evil of  polygamy should also go.

Cruelty and discrimination against any person based on religion, caste, nationality, race, or sex is the greatest sin and crime against humanity. No God can permit it and no person has a right to abuse the universal law of equality.


The ultimate solution to these abuses lies in the adoption of  uniform civil code in the country.


Shirdi Sai Baba gives Gita Gyana to a Wealthy Gentleman

This is the story about a devotee who was though affluent and happy with his family, suddenly develops an urge to know the truth about the knowledge about Brahma, the self & the God and gets it in a peculiar way through Shri Sai Baba of Shirdi.

Every day, there use to be numerous devotees visiting Shirdi to have ‘darshan’ of Sai Baba and receive his blessings to fulfill their worldly desires. Sai Baba also used to bless them and help them in his own ways in solving their problems. In a far off village, there was an affluent man who heard Sai Baba’s fame and his miracles to cure sufferings of the people. He had ample money, land, a happy family and all basic amenities in life. All along his life he was constantly engaged in making money and more money. One day as he was resting, he was suddenly stricken by a though. He said to himself that he has everything to be happy about but lacks true knowledge about the Brahma, the self, the soul and the Spirit-the Paramatma, the Almighty. He had heard a lot about the glory of a Fakir, the Sai Baba of Shirdi. He decided to go to him and surrender himself at the feet of Sai Baba. He would request Sai Baba to give him spiritual knowledge about the self, the Brahma and the God.

He expressed his desire to realize the Brahma and the Almighty to a friend. His friend laughed at him and said that he was a wealthy person and has everything in life. It is not that easy to realize the god for a householder like him who is so miser that he cannot spare a single paisa for any charity.  He advised the wealthy man to forget his desire to realize God as it is just impossible for a family man like him.

The wealthy man did not listen to the advice of his friend. He hired a return journey tonga (a horse driven carriage) and straight went to Shirdi. There he visited Sai Baba at the masjid and surrendered himself at the feet of Baba saying; Baba, I have very sincere desire to know the Brahma, the God. I have heard about you that you only can give me knowledge about the God and self. I have come to you from a far off place with this sole desire. Kindly help me in showing me the God.”

Hearing this, Sai Baba said; “you want to know God! Ok. You don’t worry. I will show you the God. You know people throng to me from far off places to be blessed with good health, children, wealth and fulfill their desire for physical happiness but nobody like you come and ask me about the knowledge of the Brahma. I am happy that today I have a visitor like you who has deep interest in knowing God.”

Sai Baba said to him that the God is the origin of everything in the world. The cause of everything like regular rising of sun and its setting, it’s traversing on a predefined path, cycle of seasonal changes; summer, rains, winter, creation of life and its decay; all are governed by the God. Therefore, it is important for human beings to know God and surrender to Him to be free from the cycle of birth and death which is only possible through the human body. Else, the soul has to born again and again and the “Jiva”, the soul goes through constant sufferings.

After that Sai Baba asked him to wait and relax and told him that he would bless him with the knowledge of God. Saying this, Sai Baba got engaged in his other works. He called a young boy near and asked him to Visit Nandu’s place and asks him to loan five rupees to Baba as he has some urgent need. The boy left with Baba’s message and returned back in a short while saying that Nandu’s house is locked so he could not get five rupees from him. Baba sent the boy again to another shopkeeper to get loan of rupees five but, incidentally, the shopkeeper was also not at the shop, so again he returned empty handed. Baba again sent the boy for a loan of rupees five to another two-three persons but every time, the boy returned empty handed.

In fact, Baba was testing the wealthy man who wanted to know God. Baba did not have any need of rupees five but pretended so to test the man. Baba knew that that very moment, this wealthy man had two hundred and fifty rupees in his pocket and after knowing Baba’s need, he could have easily taken out rupees five and given to Baba. But he didn’t. The greedy man was thinking that if he gives it to Baba, he may not return it. Even he was not ready to wait for Baba’s answer thinking that he had to return back. He interrupted Baba and asked him impatiently that having agreed to give him knowledge about God, why Baba was taking so much time. Such a greedy man wanted instant Brahma Gyana from Sai Baba. Any other man could have easily spared rupees five for Baba out of his love instead of being merely a greedy & insensitive onlooker.

Baba said to this man on hearing his question that while sitting here, Baba was only trying to impart the knowledge of God to him but he didn’t understand. Baba Said what he can do when the man was so ignorant? Baba added; “Listen man, the path to the knowledge of God is not so easy. To walk on that difficult path one has to surrender him completely leaving his greed, ego and senses. He has to surrender completely the five things in life. These five things are; (1) the five pranas (vital forces), (2) the five senses (five of action and five of perception), (3) the mind, (4) the intellect, and (5) the ego. The path of Brahma gyana or Self-realization is not easy. It is like walking on a razor edge.

Then Sai Baba gave a long discourse about Brahma Gyana, the essence of which is given below. This is exactly in essence is the deep knowledge what Lord Shri Krishna preaches in the Shrimadbhagwad Gita as Gita Gyana to devotee Arjuna.

A person who is not bothered about his body, and who is unattached to anything is only capable of knowing God and only such person qualifies to receive knowledge about the God. A person who is attached to his body, wealth and senses cannot perceive the true knowledge even after receiving many sermons. Veda’s have all the knowledge but everybody cannot perceive it without the power of discrimination. One has to dedicate himself/herself in the search of truth and has to practice regularly under the guidance of a true teacher. Then only one can reach God. The one who has sheer determination to get free from the bondage of body can only reach the goal.

Remember, there is no day and night for the sun. Where could be the freedom where there is no bondage? Where there is no duality, who binds whom and who unbinds whom? A man desires to get free as he is under the seize of “Maya”-disillusionment.  He assumes that he is the doer and so continues to suffer. He assumes that he is the body and continues to create desire after desire, never to be fully satisfied. Such a person cannot perceive the true knowledge of “Brahma”. If a person who can surrenders himself with all his senses with uninterruptible devotion, then only he can have the true realization of God.

Remember, the divine knowledge of Brahma is eternal. The ordinary people cannot realise the divine knowledge in their entire life time. A person to receive the divine knowledge or Self-Realization has to have certain qualification without which the knowledge is meaningless to him. The necessary qualifications for the true seeker are;

(1)   The seeker should possess the “Mumuksha” or intense inner desire to become free. He who single pointedly seeks the God leaving his bondage to the body and worldly desires is qualified to attain the spiritual knowledge.

(2)   The seeker has to have Virakti or a total sense of detachment with the worldly things. Unless a man feels total detachment towards the worldly things like name, fame, money, position, he is not qualified and capable of receiving the spiritual knowledge and perceiving God.  

(3)   The person has to become Antarmukhi (introvert, looking within). The senses should be reined and their tendency to run outside needs to stopped. The person who desires Self-realization and immortal life has to turn his intellect and mind inward.

(4)   The person has to purify himself/herself from the sins of past wrongdoings. He/she has to turn away from wickedness and all wrongdoings and fill himself/herself with purity and positivity to achieve self-realization.

(5)   The person has to adapt to right conduct and truthful life. He/she has to follow the path of penance, insight, and celibacy to attain the knowledge of self realization.

(6)   The person has to discriminate between shreyas (the good) and preyas (the pleasant). What is pleasant may not be good and what is shreyas may not be pleasant.  The shreyas identifies with purity and spirituality while the preyas identifies with the worldly pleasures. The person has to choose what is good for him/her. The wise man will opt for the good while the unwise will opt for pleasant out of greed and attachment.

(7)   The person has to control the mind and senses. The body is the chariot, the senses are the horses and the Self is its master. The horses of the chariot will not lead to the destination if they are not controlled by the intellect.

(8)   The person has to purify his/her mind. Conducting the dutiful actions in life purifies the mind. Unless the mind is purified, the person cannot get Self-realization. It is only the purified mind which can discriminate between the good and bad, real and unreal. The purified mind with sense of total non-attachment can lead to the Self-realization. The ego is to be dropped and the mind is to be in the state of purity and desirelessness to achieve the Self-realization. The sense of body identification; “I am the body” has to go to achieve the Self-realization.

(9)   If you have not already travelled on a path, you need to have a guide. The self mastered teacher, a guru is needed to help a person to realize the Self and the God. A guru leads the disciple step by step up the ladder of the spiritual progress and leads him/her to the final emancipation.

(10)  Lastly the most essential element in the process of Self realization is God’d grace. Without His grace nothing can happen. With God’s grace a person can gain Viveka and Vairagya to cross the ocean of his/her mundane existence. As per the Katha Upanishad, “The Self cannot be gained by the study of Vedas, neither by intellect, nor by much learning. Only with God’s grace, He reveals Himself to a true devotee”.

After the long discourse, Baba looked at the wealthy man and said, “Well, my dear brother, there are twenty five notes of rupees ten each in your pocket which are your “Brahma”. Please take them, your Brahma out. The wealthy man took out the bundle of his money out from your pocket and counted them. He noted to his great surprise that there were 25 notes of  rupees 10 each. On realizing the omniscience of Sai Baba, he was moved and fell at Baba’s feet. He eyes were full of tears and he craved again and again for His blessings. Then Baba told to him to keep his money with him but remember that unless he gets rid of his greed completely, he will not get real Brahma gyana. One whose mind is engrossed in wealth, progeny and prosperity can never attain Brahma gyana. One has to detach himself/herself from all of these. Where there is greed, there is no room to think of God and meditate on Brahma. A greedy man cannot get salvation.  For him, there is neither peace nor contentment. Purification of mind is a precondition; without which, all our spiritual endeavors are nothing but useless. It is, therefore, better for one to take only what he can digest. Baba told to the wealthy man that his treasures are always full and He can give it to anyone who wants it. But he has to see whether the person is qualified to receive it or not. Baba said to the main “If you listen to Me carefully, you will certainly be benefitted. Sitting in this masjid, I never speak any untruth.” All those who were sitting in the masjid were benefited by Baba’s discourse, the true Gita Gyan for emancipation of the man from the whirlpool of the world. Overwhelmed by Baba’s greatness, the wealthy man after getting Baba’s blessings, left the place quite happy and contented.

Bow to Shri Sai - Peace be to all

* Based on the “Saisadcharitra”, a book in Marathi by Hemadpant


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