Sunday, 27 August 2017

इन्हें बुद्धू जनता अच्छी लगती है!

ढोंगी बाबाओं और नेताओं की प्रथम पसंद का जड़ कारण विश्वेषण ..

आखिर भारत की जनता ढोंगी बाबाओं के चक्कर में कैसे आ जाती है,  यह एक सोचने का विषय है. लोगों में क्या आत्मविश्वास की इतनी कमी है कि वह किसी अपनी व्यक्तिगत  समस्या के समाधान के लिए ढोंगी बाबाओं के चक्कर में आ जाते हैं. ये ढोंगी बाबा भोले अनपढ़ और अंधविश्वासी जनता का नाजायज फायदा उठाते हैं. पाखण्ड और फरेब के द्वारा इस तरह के कुछ बाबा लोग अथाह संपति संचित कर लेते है और अपने लाखों समर्थकों के साथ एक ताकतवर साम्राज्य बनाने में सफल हो जाते है। इनका साम्राज्य और प्रभाव देखकर बड़े बड़े नेता लोग भी राजीतिक फायदा उठाने के लिए इनके पास अपना माथा टेंकने पहुंच जाते है और अपने वोट बेंक के खोने के डर से कायर बनकर इनके घिनौने गुनाह अनदेखा करने लगते है। इस तरह के आँख बन्द करने वाले नेता लगभग सभी राजनीतिक दलों में पाए जाते है। उनकी प्राथमिक नीति "राष्द्र प्रथम" से हटकर "वोट प्रथम" में बदल जाती है।

कुछ छोटे स्तर के बाबा लोग भी अपनी छोटी स्तर की सत्ता बनाकर  शिकार की तलाश में घुमते फिरते रहते है और वे भी भोले और डरपोक लोगों के शोषण में लग जाते है। इसी तरह कुछ ज्योतिषी भी अपना धंधा शुरु कर देते है। कोई तोता लेकर बैठ जाता है तो कोई किताब। कोई नग और अंगुठी बेचता है तो कोई ताबीज। इन महानुभावों को अपने कल के भोजन का पता नही होता लेकिन ये आपके भविष्य की घटनाओं का बखान करने में उस्ताद होते है। आपका विश्वास पाने के लिए आपकी कुछ अच्छाई बता कर तारीफ करेंगे। आपकी आने वाली समस्याओं का हल इनके पास होता हैं। पूजा पाठ, अंगुठी पहनना इसमें विषेश स्थान रहते है। पैसों के हिसाब से ही इनका कम ज्यादा प्रभाव बताते है। इनके शिकार केवल महिलाएं ही नही होती बल्कि अच्छे अच्छे पढ़े लिखे लोग भी इन बाबाओं और भविष्य वक्ताओं के झांसे में आ जाते है। राजनेता लोग भी महा डरपोक होते है।अपनी सत्ता को बचाने के लिए कर्म काण्ड करते रहते है और बाबाओं के चेले बन जाते है।

इन सब बातों के पीछे भारतियों की मानसिक अपरिपक्वता जिम्मेदार है। इसी अपरिपक्वता का नेताओं ने भी खूब फायदा लिया है और लेते जा रहे है। नेताओं के लिए नागरिकों का अनपढ़ और गरीब होना, उनका भोला और अपरिपक्व होना बड़े फायदे की बात होती है, जिससे उन्हें एक वोट बेंक के रुप में उपयोग में लाया जा सकें। उन्हें कभी धर्म के नाम पर, कभी जाति के नाम पर और कभी आस्था के नाम पर बांट कर उनका वोट अपनी झोली में डाला जा सकें। इसमें भारत का सदियों तक गुलाम रहना, बाहर के लोगों का भारत में आकर उसे लुटना और उन पर अत्याचार करना इत्यादि घटनाओं का बड़ा हाथ है। यह क्रम देश की आजादी के बाद भी फलता फूलता रहा है। इसी क्रम के कारण कुछ ढोंगी राजनेताओं के साथ साथ कुछ ढोंगी बाबाओं ने भी अपनी दुकानें खोल रखी है। इसी के परिणामस्वरुप पंचकुला जैसे काण्ड होते रहते है, और आगे भी होते रहेंगे, कभी आस्था के नाम पर और कभी दलगत राजनीति के नाम पर। होते रहेंगे तब तक जब तक भारत की जनता पूर्ण रुप से सुशिक्षित, सुखी, सम्पन्न और परिपक्व मानसिकता की धनी न हो  जाती।

विडंबना यही है कि ऐसा समय दुर्भाग्यवश बहुत दूर दिखता है।

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