दो बिल्ली और एक बंदर की कहानी हर भारतीय नागरिक ने बचपन में जरूर सुनी होगी। आज के सामाजिक और राजनीतिक परिवेश को देखकर इन बिल्ली और बंदर की कहानी से उपयुक्त और कोई कहानी इतनी सटीक उदाहरण के रूप में सामने नही आ रही है।
पहले कहानी को एक बार पुनः दोहराते है।
एक सुन्दर और सम्पन्न गाँव था। उस गाँव में दो बिल्लियां रहती थी। एक का रंग सफेद था और दुसरी का काला। दोनों में बहुत दोस्ती थी और एक दुसरे के बिना वे रह नही सकती थी। उन्हें गाँव के घरों से जो भी मिलता उसे आपस में बांटकर खा लेती थी और आनन्द के साथ जिन्दगी गुजार रही थी। एक दिन उन्हे बहुत भूख लगी थी। संयोगवश उन्हें उस दिन एक ही रोटी मिली।। फिर भी दोनों बिल्लियां खुश होकर उस रोटी को खाने के लिए आपस में बांटने लगी। एक बिल्ली ने रोटी के दो टुकड़े किए और एक स्वयं लिया और दुसरा टुकड़ा दुसरी बिल्ली के सामने रख दिया। दुसरी बिल्ली को लगा कि उसका टुकड़ा कुछ छोटा है। इस पर उसने पहली बिल्ली पर भेदभाव का आरोप लगा दिया और दोनों में इस बात पर तूतू - मैमैं हो गई। दोनों एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रही थी। जब दोनों में कोई सहमति नही हो पाई तो उन दोनों बिल्लियों ने रोटी के बराबर बंटवारे के लिए किसी तीसरे की सहायता लेने का प्रस्ताव रखा। एक बंदर उपर पेड़ पर बैठे दूर से उनका ये झगड़ा देख रहा था और उनकी रोटी छिनने की ताक में था। बंदर उनके पास पहुंचा और दोनों को सम्बोधित कर कहा कि वे आपस में क्यों लड़ रही है। दोनों बिल्लियों ने मिलकर बंदर के सामने सारी बाते रखकर अपना अपना पक्ष समझाया। बंदर ने वादा किया कि वह दोनों के साथ पूरा न्याय करेगा। वह अन्दर ही अन्दर बहुत खुश हुआ, क्योंकि दोनों बिल्लियों के भाग्य का छींका तो अब उसके हिस्से में टूटने वाला था।
बंदर कहीं से जाकर तुरंत एक तराजू ले आया और दोनों बिल्लियों के सामने रोटी के दोनों टुकड़े एक एक पलड़े में रख दिये। दोनों बिल्लियां बंदर के न्याय दिलाने की प्रक्रिया से बहुत खुश थी। तभी उन्होंने देखा कि बंदर ने जो रोटी के टुकड़े वाला पड़ला भारी था, उस टुकड़े से थोड़ी सी रोटी तोड़कर अपने स्वतः के मुंह में डाल ली। परिणाम स्वरूप रोटी के दुसरे टुकड़े वाला पड़ला भारी हो गया। बंदर ने फिर उस टुकड़े से थोड़ी सी रोटी तोड़कर अपने मुंह में रख ली। यह क्रम चलता रहा और बंदर हर बार भारी टुकड़े से रोटी तोड़कर खाता रहा। दोनों बिल्लियां बंदर के निश्पक्ष निर्णय की प्रतीक्षा कर रही थी। तभी उन्होंने विष्मय से देखा कि अब तो दोनो पलड़ों में रोटी के टुकड़े बहुत ही छोटे छोटे रह गये। उन्हें अब बंदर की चालाकी समझ में आ गई। बंदर उन्हें न्याय दिलाने का वादा कर लगभग सारी की सारी रोटी उनकी आंखों के सामने ही उन्हें बेवकूफ बना कर खा गया था। दोनों ने उस बंदर से कहा कि वह अब बचे हुए रोटी के टुकड़े छोड़ दे, वे दोनों स्वतः हिस्से कर लेगी। बंदर ने कहा ठीक है, उसे कोई आपत्ति नही है लेकिन उसे उसके समय और न्याय दिलाने की मिहनत के लिए मेहनताना जरूर मिलना चाहिए। यह कहकर उस बंदर ने बचे हुए रोटी के दोनों बचे हुए टुकड़े भी अपने मुंह में डाले और वहां से छूमंतर हो गया।
दोनों बिल्लियाँ अपना खिसियाना सा मुंह लेकर एक दुसरे की तरफ देखती रही। उन्हें अपनी गलती का बुरी तरह भूखे पेट अहसास हो चुका था। उन्हें समझ में आ गया कि आपसी विवाद और फूट का बहुत भयानक परिणाम होता है, और इससे कोई दूसरा ही फायदा उठा ले जाता है।
इस कहानी में दोनों सफेद और काली बिल्लियां आज का भारतीय समाज है जो राष्द्रहीत की भावना को भूलकर अपना व्यक्तिगत स्वार्थ सीधा करने के लिए काले और सफेद रंग में बंटा हुआ है। आपस में जात-पांत, हिन्दु- मुसलमान और उंच-नीच की दिवारों द्वारा आपस में बंटकर सामाजिक और राजनीतिक फूट और विवाद का हिस्सा बन जाता है।और चालाक बंदर कौन है, आप सब समझ ही गये है। ये चालाक बंदर हमारे राजनेता है जो हमारे आपसी कलह और फूट का फायदा लेकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते रहते है और कभी कभी आपके सामने दिखावे के रुप में चंद रोटियों के टुकड़े फेंककर मोटा माल गटक जाते है। सारे नेता आपको न्याय और आपका समान हक दिलाने की बड़ी बड़ी बातें तो बहुत करते है लेकिन आपकी हालत आजादी के सत्तर साल बाद भी बहुत ज्यादा नही बदल पाये। शायद वे आपकी हालत बदलना चाहते भी न हो। हां, पर इन राजेनताओं, उनके सगे संबंधियों और उनके ख़ास लोगों के घर बहुत आबाद हुए है जो जग जाहीर है।
इसलिये भारतीय प्रजातंत्र में समझदार और प्रबुद्ध नागरिकों के साथ उनकी एक समद्रष्टि की भी बहुत बड़ी आवश्यक है।शुभ संकेत आज कुछ हद तक संतोष दिलाते है कि प्रायः जनता जागरूकता का प्रमाण दे रही है। समय बदल रहा है और समाज में सामाजिक और राजनीतिक परिपक्वता प्रदर्शित हो रही है।
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