ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति ।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया ॥
भगवान कृष्ण गीता श्लोक 61, अध्याय 18, सन्यास योग में कहते , हे अर्जुन ! ईश्वर और उसकी अनन्त शक्तियाँ सभी प्राणियों के ह्रदय में समान रूप में विराजमान है । शरीररुप यंत्र पर आरुढ हुए सब प्राणियों को, अपनी माया के ज़रीये, हरेक के कर्मों के मुताबिक, वह घूमाता रहता है और उसी के द्वारा उसे मुक्ति पभी प्रदान करता है।
उक्त कथन हर युग, हर धर्म में शाश्वत है और सभी धर्मो का सार भी है। फिर हम हम मानव रुपी यंत्र किसी दुसरे मानव रूपी यंत्र को अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए कैसे नुकसान पहुंचा सकते है? क्या ऐसा करना स्वयं ईश्वर को नुकसान पहुंचाना नही है? यह शाश्वत सत्य मानव को कब समझ में आएगा? कौन सा धर्म ऐसी अनुमति देता है? यदि कोई धर्म ऐसा कहता है तो वह एक सच्चा धर्म नही हो सकता। धर्म वही है जो हर समय और युग की कसौटी पर खरा उतरे। फिर भी उन्माद से भरे कुछ लोग जघन्य आतंक और हत्याएं करने से नही चुकते। विश्व में घटित कई क्रूर आतंकी हमले इस बात की पुष्टि करते है। कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे है जो अपने आप में विभत्स और घिनौने मस्तिष्क के द्योतक है। कल लंदन की संसद पर जो हमला हुआ वह निंदनीय है और दिखाता है कि आतंकवाद की श्रंखला रुकने का नाम नही ले रही है।
ब्रितानी संसद में एक संदिग्ध हमलावर ने पुलिसवाले पर चाकू से हमला किया जिसमें पुलिस वाले की मौत हो गई। वेस्टमिंस्टर ब्रिज पर एक कार ने कई लोगों को टक्कर मारी जिसमें एक महिला की मौत।
13 दिसंबर 2001 को पांच आतंकवादियों ने भारतीय संसद पर हमला किया। आठ सिपाही शहीद हुए।
9 सितंबर 2001 के दिन न्यूयॉर्क की नाक कही जाने वाली इमारत वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमला।करीब 3000 लोग मारे गए।
26 नवंबर 2008 की शाम को मुंबई में आतंकी हमला। 166 लोग मारे गए।
.........ऐसे अनगिनत उदाहरण है.
आतंक के इस घिनौने चेहरे को विश्व पटल से पूर्ण रूप से हटाने के लिए संपूर्ण विश्व को एक होने की जरूरत है। विश्व के समस्त राजनेता और जनता को आपसी मतभेद भूलाकर मानवता की रक्षा के लिए एक श्वर में आवाज उठाने की जरूरत है।
पुनः मानव धर्म स्पापित करने की जरूरत है। समय चक्र के इस निम्नतर स्तर से मुक्ति पाने की जरूरत है।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया ॥
भगवान कृष्ण गीता श्लोक 61, अध्याय 18, सन्यास योग में कहते , हे अर्जुन ! ईश्वर और उसकी अनन्त शक्तियाँ सभी प्राणियों के ह्रदय में समान रूप में विराजमान है । शरीररुप यंत्र पर आरुढ हुए सब प्राणियों को, अपनी माया के ज़रीये, हरेक के कर्मों के मुताबिक, वह घूमाता रहता है और उसी के द्वारा उसे मुक्ति पभी प्रदान करता है।
उक्त कथन हर युग, हर धर्म में शाश्वत है और सभी धर्मो का सार भी है। फिर हम हम मानव रुपी यंत्र किसी दुसरे मानव रूपी यंत्र को अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए कैसे नुकसान पहुंचा सकते है? क्या ऐसा करना स्वयं ईश्वर को नुकसान पहुंचाना नही है? यह शाश्वत सत्य मानव को कब समझ में आएगा? कौन सा धर्म ऐसी अनुमति देता है? यदि कोई धर्म ऐसा कहता है तो वह एक सच्चा धर्म नही हो सकता। धर्म वही है जो हर समय और युग की कसौटी पर खरा उतरे। फिर भी उन्माद से भरे कुछ लोग जघन्य आतंक और हत्याएं करने से नही चुकते। विश्व में घटित कई क्रूर आतंकी हमले इस बात की पुष्टि करते है। कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे है जो अपने आप में विभत्स और घिनौने मस्तिष्क के द्योतक है। कल लंदन की संसद पर जो हमला हुआ वह निंदनीय है और दिखाता है कि आतंकवाद की श्रंखला रुकने का नाम नही ले रही है।
ब्रितानी संसद में एक संदिग्ध हमलावर ने पुलिसवाले पर चाकू से हमला किया जिसमें पुलिस वाले की मौत हो गई। वेस्टमिंस्टर ब्रिज पर एक कार ने कई लोगों को टक्कर मारी जिसमें एक महिला की मौत।
13 दिसंबर 2001 को पांच आतंकवादियों ने भारतीय संसद पर हमला किया। आठ सिपाही शहीद हुए।
9 सितंबर 2001 के दिन न्यूयॉर्क की नाक कही जाने वाली इमारत वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमला।करीब 3000 लोग मारे गए।
26 नवंबर 2008 की शाम को मुंबई में आतंकी हमला। 166 लोग मारे गए।
.........ऐसे अनगिनत उदाहरण है.
आतंक के इस घिनौने चेहरे को विश्व पटल से पूर्ण रूप से हटाने के लिए संपूर्ण विश्व को एक होने की जरूरत है। विश्व के समस्त राजनेता और जनता को आपसी मतभेद भूलाकर मानवता की रक्षा के लिए एक श्वर में आवाज उठाने की जरूरत है।
पुनः मानव धर्म स्पापित करने की जरूरत है। समय चक्र के इस निम्नतर स्तर से मुक्ति पाने की जरूरत है।
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