Friday, 24 March 2017

मरता हुआ देश का अन्नदाता

तमिलनाडु के किसान दिल्ली में अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे है। अधिक कुछ लिखने या कहने की जरूरत नही है। इनके गले में लटके ये नरमुंड स्वयं अपनी कहानी बयां करते है।

यह हाल जमीनी जल स्तर की कमी से हुआ है। यह समस्या केवल तमिलनाडु की ही नही है बल्कि भारत के कई हिस्सों में आम है।समय की मांग रेन वाटर हारवेस्टिंग की योजनाएं बड़े पैमाने पर कार्यान्वित करने की है। बारीस के पानी को व्यर्थ बरबाद होने से बचाकर ग्राउंड वाटर रिचार्जिंग करना अनिवार्य हो गया है।

 इन किसनों की पीड़ा समझने वाला कोई नही है। पूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा दिया हुआ नारा "जय जवान जय किसान" आज बेमानी हो गया है।

चित्रों में दिख रहे ये नर मुंड इन किसानों के दिवगंत किसान साथियों के है जिन्होंने गरीबी के कारण आत्महत्या की है।

मानवता को शर्मिंदा करने वाली ये तस्वीर बहुत कुछ प्रश्न उठा रही है। किसानों के लिए न ही कोई मंहगाई भत्ता बढ़ता है, न ही कोई पे कमीशन बैठता है और न ही कोई पेंशन होती है । स्वयं अपना पेट भरने के प्रयत्न करते रहते है और अनायास ही देश के लिए अन्नदाता बन जाते है। देश का पेट भरने वाले फिर भी भूखे रहते है, आत्म हत्या करते है और हम जैसों के लिए कोई चिन्ता और शर्मींदगी के कोई विषय नही होते।

मानवता की ये कितनी कठोर परीक्षा है?








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