भारत देश की यह दुर्भाग्यपूर्ण विडम्बना है कि जहाँ सारे नागरिक तो एक होना चाहते है, साथ साथ शांति और भाई-चारे की भावना से रहना चाहते लेकिन भारत के स्वार्थी राजनेता झ्न्हें अनेकों टुकड़ों में बाँटने का काम बेझिझक करते रहते है और अपनी वोट बेंक की स्वार्थपूर्ण राजनीति की दुकान बुलंद रखने के लिए जनता को एक नही होने देते। विभिन्न दलों के नेता कभी एक आवाज में बात नही करते, चाहे वह विषय राष्द्र की अखण्डता और एकता की रक्षा का हो, आतंक के खिलाफ देश की लड़ाई का हो या सबको समान अधिकार और समान विकास के अवसर देने का हो। ये लोग यहां तक गिर जाते हैं कि सरहद पर राष्ट्र की रक्षा के लिए तैनात अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले जवानों के लिए भी अभद्र भाषा उपयोग में लाने से नही डरते। मजे की बात तो फिर भी यह है कि ये ही लोग अपने आपको देश और जनता के सबसे बड़े सेवक कहने से नही चुकते। लेकिन इनकी असलियत यही है कि जनता इनके लिए मत पेटी में बंद एक वोट के अंक से ज्यादा कुछ नही है।
हाँ! ये लोग एक ही विषय पर अवश्य एकमत और एकजुट होते है जब बात इनके वेतन, सुख-सुविधाएं और व्ही व्ही आई पी स्टेटस की होती है।
ये नेतागण जनता के नुमाइंदे कहलाते है। लेकिन कभी कभी इनकी राष्ट्र विरोधी करतूतें और भाषा की बिना लगाम की अभद्रता इस हद तक पंहुच जाती है कि इनसे घिन आने लगती है, इन्हें अपना नुमाइंदा मानना तो बहुत दूर की बात है। कल एक कांग्रेस के दिग्गज (?) नेता (यह शब्द उस नेता के नाम में भी शामील है) ने प्रधान मंत्री के खिलाफ जो ट्विट किया है, उस नेता ने न सिर्फ भारत के प्रधान मंत्री का अपमान किया है, बल्कि देश के करोड़ों नागरिकों के विवेक और अपना प्रतिनिधि चुनने के प्रजातात्रिक अधिकार का अपमान और मजाक उड़ाया है। उस नेता ने साथ हीे भारतीय प्रजांतत्र को अपमानित करने और भारत की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था और पद का अपमान करने का सबसे बड़ा अपराध कर डाला है। विरोध करना हर किसी का प्रजातांत्रिक हक है और उस नेता का भी हक है। लेकिन जिस भाषा का उपयोग उस नेता ने प्रधान मंत्री और मतदाताओं व समर्थकों के लिए किया है, उस भाषा को लिखना या कहना भी सभ्य लोगों के बीच अपने आपको घटिया इंसान साबित करना माना जाता है। क्या संविधान में ऐसे लोगों को दंडित करने का कोई कानून नही है?
हम सबको शर्म आनी चाहिए कि हमारे ऐसे भी जन प्रतिनिधि है। विश्वास करना कठीन होता है कि ऐसा नेता एक महत्वपूर्ण राज्य का कभी लंबे समय के लिए मुख्यमंत्री भी था। सत्ता की भूख के पीछे गाँधी-नेहरू की पार्टी के कुछ लोग इस हद तक गिर जाएंगे विश्वास नही होता। उपर से कांग्रेस के शीर्ष पदाधिकारी ऐसे कृत्यों के मूक दर्शक और अघोषित समर्थक बन जाते है।
इस प्रकार की मानसिकता के शिकार कई तथाकथित लिबरल पत्रकार समूह भी है जिनका इन नेताओं के साथ कुछ अपवित्र और दुषित संबंध दिखाई देता है। अभद्र व्यवहार प्रदर्शित करने और जनता को गुमराह करने के महादोष और अपराध में यह समूह भी बराबरी से शामील है।
यह दुष्कृत्य एक विरोधी विचारधारा का नही बल्कि एक घिनौनी मानसिकता का एक बड़ा सूचक है। दुख की बात यही है कि ऐसे घटियापन की पुनरावृति होती रहेगी। ऐसे लोग राष्ट्र निर्माण क्या ख़ाक करेंगे जो अपने आपका भी एक इन्सान के रुप में निर्माण नही कर पाए। बोलने की आजादी के नाम पर इनके द्वारा घटिया बोल बोलने का क्रम कब तक जारी रहेगा?
स्वच्छता अभियान के कार्यक्रम के अन्तर्गत देश में पनपती ऐसीे घटिया मानसिकता की सफाई भी जरूरी हो गयी है। जनता को इस विषय में विचार करने और इस सफाई अभियान में भागीदार बनने की अत्यंत जरूरत है। आप और हम विपरीत राजनीति विचार और तर्क रखें लेकिन किसी भी दल की इस घटिया मानसिकता हिस्सा कभी नही बनें। स्वस्थ और स्वच्छ राजनीति और विचार धारा की आज देश के विकास और प्रजातंत्र को मजबूत बनाने के लिए सबसे अधिक जरूरी है।
हाँ! ये लोग एक ही विषय पर अवश्य एकमत और एकजुट होते है जब बात इनके वेतन, सुख-सुविधाएं और व्ही व्ही आई पी स्टेटस की होती है।
ये नेतागण जनता के नुमाइंदे कहलाते है। लेकिन कभी कभी इनकी राष्ट्र विरोधी करतूतें और भाषा की बिना लगाम की अभद्रता इस हद तक पंहुच जाती है कि इनसे घिन आने लगती है, इन्हें अपना नुमाइंदा मानना तो बहुत दूर की बात है। कल एक कांग्रेस के दिग्गज (?) नेता (यह शब्द उस नेता के नाम में भी शामील है) ने प्रधान मंत्री के खिलाफ जो ट्विट किया है, उस नेता ने न सिर्फ भारत के प्रधान मंत्री का अपमान किया है, बल्कि देश के करोड़ों नागरिकों के विवेक और अपना प्रतिनिधि चुनने के प्रजातात्रिक अधिकार का अपमान और मजाक उड़ाया है। उस नेता ने साथ हीे भारतीय प्रजांतत्र को अपमानित करने और भारत की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था और पद का अपमान करने का सबसे बड़ा अपराध कर डाला है। विरोध करना हर किसी का प्रजातांत्रिक हक है और उस नेता का भी हक है। लेकिन जिस भाषा का उपयोग उस नेता ने प्रधान मंत्री और मतदाताओं व समर्थकों के लिए किया है, उस भाषा को लिखना या कहना भी सभ्य लोगों के बीच अपने आपको घटिया इंसान साबित करना माना जाता है। क्या संविधान में ऐसे लोगों को दंडित करने का कोई कानून नही है?
हम सबको शर्म आनी चाहिए कि हमारे ऐसे भी जन प्रतिनिधि है। विश्वास करना कठीन होता है कि ऐसा नेता एक महत्वपूर्ण राज्य का कभी लंबे समय के लिए मुख्यमंत्री भी था। सत्ता की भूख के पीछे गाँधी-नेहरू की पार्टी के कुछ लोग इस हद तक गिर जाएंगे विश्वास नही होता। उपर से कांग्रेस के शीर्ष पदाधिकारी ऐसे कृत्यों के मूक दर्शक और अघोषित समर्थक बन जाते है।
इस प्रकार की मानसिकता के शिकार कई तथाकथित लिबरल पत्रकार समूह भी है जिनका इन नेताओं के साथ कुछ अपवित्र और दुषित संबंध दिखाई देता है। अभद्र व्यवहार प्रदर्शित करने और जनता को गुमराह करने के महादोष और अपराध में यह समूह भी बराबरी से शामील है।
यह दुष्कृत्य एक विरोधी विचारधारा का नही बल्कि एक घिनौनी मानसिकता का एक बड़ा सूचक है। दुख की बात यही है कि ऐसे घटियापन की पुनरावृति होती रहेगी। ऐसे लोग राष्ट्र निर्माण क्या ख़ाक करेंगे जो अपने आपका भी एक इन्सान के रुप में निर्माण नही कर पाए। बोलने की आजादी के नाम पर इनके द्वारा घटिया बोल बोलने का क्रम कब तक जारी रहेगा?
स्वच्छता अभियान के कार्यक्रम के अन्तर्गत देश में पनपती ऐसीे घटिया मानसिकता की सफाई भी जरूरी हो गयी है। जनता को इस विषय में विचार करने और इस सफाई अभियान में भागीदार बनने की अत्यंत जरूरत है। आप और हम विपरीत राजनीति विचार और तर्क रखें लेकिन किसी भी दल की इस घटिया मानसिकता हिस्सा कभी नही बनें। स्वस्थ और स्वच्छ राजनीति और विचार धारा की आज देश के विकास और प्रजातंत्र को मजबूत बनाने के लिए सबसे अधिक जरूरी है।
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