कल से दिल्ली में दो दिन का किसान आंदोलन शुरु है। आजयह आंदोलन भारतीय संसद के दरवाजे पर पहुंचने वाला है। रामलीला मैदान में हजारों किसान धरने पर है। फिर नेताओं का जमावड़ा कैसे पीछे रह सकता है। और ये ही लोग किसानों का जमावड़ा भी इकट्ठा कर सकते है। गरीब किसान तो अपना इलाज करवाने शहर तक भी नही जा सकता है। इतने बड़े आंदोलन के लिए पैसा चाहिए, स्पांसर करने वाला चाहिए। पर्दे के पीछे कौन है? कोई न कोई बड़ी ताकतें तो होगी ही।
आश्चर्य कि बात तो यह है कि आज जो नेता इन किसानों के साथ खड़े दिखाई दे रहे है, उनमें से कइयों को लम्बे समय तक सत्ता सुख भोगते हुए देखा गया है। सत्ता सुख तो इन्होंने लम्बे समय तक भोगा है पर देश के किसानों की हालत बद से बदतर होती चली गई। किसान आत्महत्यायें करने पर बाध्य हो गये। हां, फरक पड़ा है इन नेताओं की सम्पति का जो कई गुणा बढ़ी है। अनेकों उदाहरण सभी जानते है। राजनेता अथाह सम्पति के मालिक कैसे बनें? इसका जवाब ये लोग नही देते। किसानों की गरीबी और भूखमरी का उपयोग करना ये लोग भली भांति जानते है। और साढ़े चार साल पहले सत्ता में आये मोदी सरकार को सारा दोष देना यह तो इनका प्रमुख दांव है। जैसे किसानों की सारी समस्यायें मोदी के आने पर ही आई हो। जैसे देश में इसके पहले देश में किसान मालामाल थे। कोइ आत्महत्या नही करते थे। केवल मोदी ने ही किसान के इतने बुरे दिन पैदा किए।
कुछ विपक्ष के राजनेताओं को और साथ ही बांई विचारधारा के पक्षधरों को तो गरीब अच्छे लगते है। तभी तो इनके "गरीबी हटाओं, मुफ्त में राशन, मुफ्त में बिजली, मुफ्त में पानी, कर्जा माफी" जैसे अनेकों नारें जन्म ले सकते है और जनता को भिखारी बनाया जा सकता है। अशिक्षा, गरीब और गरीबी तो इनका सबसे बड़ा राजनैतिक हथियार है। तभी तो देश में क्रांति का नारा दिया जा सकता है। यदि न रहेगा बांस तो बंशी कहा से बजेगी? न रहेगा गरीब तो इनकी राजनीति की दुकान कैसे चलेगी? अतीत गवाह है कई बार और कई राज्यों में किसानों का कर्जा माफ किया गया है। कई बार मुफ्त में राशन और बिजली बांटी गई है। पर क्या किसानों की और देश के गरीबों की आर्थिक हालत सुधरी है?
आज किसानों को भीख देने की नही है। जरुरत है, उन्हें सिंचाई के अच्छे साधन, फसल की उचित किंमत और फसल खराब होने पर उचित मुवावजा देने की। साथ ही किसानों को अच्छी स्वास्थ्य सेवा, उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा और उचित मुल्यों पर अच्छे बीज और उर्वरक उपलब्ध करवाने की आवश्यकता है।
देश का अन्नदाता जो अपना पेंट भरने के लिए पूरे राष्ट्र का और राष्ट्र के हर नागरिक का पेंट भरता हो, उसे भूखा रखना और आत्महत्या के लिए मजबूर करना सबसे बड़ा देश का सामूहिक गुनाह और पाप है। यह बंद होना चाहिए। इस पर हर राजनेता और नागरिक को एक होना चाहिए। यह राजनीति का विषय नही है। इस पर राजनीति बंद होना चाहिए।
आश्चर्य कि बात तो यह है कि आज जो नेता इन किसानों के साथ खड़े दिखाई दे रहे है, उनमें से कइयों को लम्बे समय तक सत्ता सुख भोगते हुए देखा गया है। सत्ता सुख तो इन्होंने लम्बे समय तक भोगा है पर देश के किसानों की हालत बद से बदतर होती चली गई। किसान आत्महत्यायें करने पर बाध्य हो गये। हां, फरक पड़ा है इन नेताओं की सम्पति का जो कई गुणा बढ़ी है। अनेकों उदाहरण सभी जानते है। राजनेता अथाह सम्पति के मालिक कैसे बनें? इसका जवाब ये लोग नही देते। किसानों की गरीबी और भूखमरी का उपयोग करना ये लोग भली भांति जानते है। और साढ़े चार साल पहले सत्ता में आये मोदी सरकार को सारा दोष देना यह तो इनका प्रमुख दांव है। जैसे किसानों की सारी समस्यायें मोदी के आने पर ही आई हो। जैसे देश में इसके पहले देश में किसान मालामाल थे। कोइ आत्महत्या नही करते थे। केवल मोदी ने ही किसान के इतने बुरे दिन पैदा किए।
कुछ विपक्ष के राजनेताओं को और साथ ही बांई विचारधारा के पक्षधरों को तो गरीब अच्छे लगते है। तभी तो इनके "गरीबी हटाओं, मुफ्त में राशन, मुफ्त में बिजली, मुफ्त में पानी, कर्जा माफी" जैसे अनेकों नारें जन्म ले सकते है और जनता को भिखारी बनाया जा सकता है। अशिक्षा, गरीब और गरीबी तो इनका सबसे बड़ा राजनैतिक हथियार है। तभी तो देश में क्रांति का नारा दिया जा सकता है। यदि न रहेगा बांस तो बंशी कहा से बजेगी? न रहेगा गरीब तो इनकी राजनीति की दुकान कैसे चलेगी? अतीत गवाह है कई बार और कई राज्यों में किसानों का कर्जा माफ किया गया है। कई बार मुफ्त में राशन और बिजली बांटी गई है। पर क्या किसानों की और देश के गरीबों की आर्थिक हालत सुधरी है?
आज किसानों को भीख देने की नही है। जरुरत है, उन्हें सिंचाई के अच्छे साधन, फसल की उचित किंमत और फसल खराब होने पर उचित मुवावजा देने की। साथ ही किसानों को अच्छी स्वास्थ्य सेवा, उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा और उचित मुल्यों पर अच्छे बीज और उर्वरक उपलब्ध करवाने की आवश्यकता है।
देश का अन्नदाता जो अपना पेंट भरने के लिए पूरे राष्ट्र का और राष्ट्र के हर नागरिक का पेंट भरता हो, उसे भूखा रखना और आत्महत्या के लिए मजबूर करना सबसे बड़ा देश का सामूहिक गुनाह और पाप है। यह बंद होना चाहिए। इस पर हर राजनेता और नागरिक को एक होना चाहिए। यह राजनीति का विषय नही है। इस पर राजनीति बंद होना चाहिए।