Friday 24 February 2017

महाशिवरात्रि और भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग

भारत में महाशिवरात्रि या शिवरात्रि एक प्रमुख त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। भगवान शिव या भगवान शंकर की आराधना, भक्ति और उनके प्रति समर्पण का द्योतक यह त्यौहार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी, अमावस्या के दिन जो प्राय: मार्च के महिने में पड़ता है, बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।

शिवरात्रि के विषय में यह मान्यता है कि इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान शंकर का रुद्र के रूप में बृम्हा से अवतरण हुआ था। एक मान्यता यह भी है कि भगवान विष्णु और बृम्हा के बीच अपनी अपनी श्रेष्ठता को लेकर  विवाद होने पर भगवान शिव ने महाशिवरात्रि के दिन तांडव नृत्य करते हुए अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से समस्त सृष्टि को भष्म करना चाहा और उन्हें  उस ज्वाला का अंतिम छोर ढुंढकर अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने की चुनौती थी। बृम्हा ने झूठा सबूत पेश किया जिससे नाराज होकर शिवजी ने बृम्हा को श्राप दिया कि कोई भी बृम्हा की पूजा प्रार्थना नही करेगा। एक और मान्यता है कि शिवरात्रि के दिन ही समुद्र मंथन से निकला हुआ विष शिवजी ने स्वयं पीकर  सृष्टि को विनाश से बचाया था। विषपान के फलस्वरूप शिवजी का गंठ (गला) नीला पड़ गया था और इसी कारण शिवजी नीलकंठ के नाम से भी जाने जाने लगे। कुछ लोग यह भी मानते है कि इसी दिन शिवजी का विवाह माँ शक्ति के साथ हुआ था।

महाशिवरात्रि के सम्बंध में कई पौराणिक कहानियां प्रचलित है। उनमें से एक कहानी भगवान शिव के दयालुपण को दर्शाती है। कहानी के अनुसार एक शिकारी था जो जंगली जानवरों का शिकार कर अपना जीवन यापन करता था। एक बार वह शिकार करने जंगल में गया। पूरा दिन उसका निकल गया लेकिन उसके हाथ कोइ शिकार नही लगा। फलस्वरूप वह थककर एक पेड़ के पास रात व्यतीत करने के लिए गया। लेकिन रात में जंगली जानवरों का डर सताने के कारण वह उस पेड़ पर चढ़ गया। नींद के कारण वह पेड़ से नीचे नही गिर जाए, इसलिए उसने जागते रहने की एक तरकीब निकाली। वह उस पेड़ का एक एक पत्ता तोड़कर नीचे डालने लगा। संयोगवश जहां पत्ते गिरते थे वहां पत्तों से ढका एक शिवलिंग था। शिकारी द्वारा तोड़े हुए पत्ते अनायास ही भगवान शंकर के शिवलिंग पर गिरते रहे और अनजाने ही शिकारी द्वारा भगवान शंकर की पूजा घटित हो गई।  फलस्वरुप भगवान शिव ने प्रसन्न होकर शिकारी की आत्मा को स्वच्छ, निर्मल और दयावान बना दिया। उसने उस दिन से शिकार करना छोड़ दिया और भगवान की भक्ति के प्रति समर्पित हो गया। उसने जान लिया कि अपने स्वार्थ के लिए हिंसा का मार्ग चुनना गलत है और मनुष्य को जंगली जानवरों के साथ साथ सब प्राणी मात्र के साथ दयाप्रेम और सहिष्णुता का भाव रखना चाहिए। 


शिवरात्रि का पर्व दिन में भगवान शिव की पूजा -अर्चना से शुरु होती है और मध्यरात्रि तक जागरण और किर्तन से समाप्त होता है। पूजा में भगवान शिव के शिवलिंग का जल और दुध से अभिषेक किया जाता है बेल के पत्ते, फल और पुष्प चढ़ाए जाते है। साल भर में होने वाली  बारह शिवरात्रियों में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। 

भगवान  शंकर के भारत में बारह ज्योतिर्लिंग स्थापित है जिनकी भगवान शिव की पूजा अर्चना के लिए विशेष महत्ता है। बारह महिने यहाँ भक्तों का पूजा अर्चना के लिए तांता लगा रहता है।  ये बारह ज्योतिर्लिंग है; 

1- सोमनाथ ज्योतिर्लिंग - यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है। 

2- मल्लिकार्जुन- यह ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है। 

3- महाकालेश्वर- यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी कही जाने वाली उज्जैन नगरी में स्थित है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषता है कि ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है।

4- ओंकारेश्वर- ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध शहर इंदौर के समीप स्थित है। जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है, उस स्थान पर नर्मदा नदी बहती है और पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ऊं का आकार बनता है। यह ज्योतिर्लिंग औंकार अर्थात ऊं का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है।

5- केदारनाथ-केदारनाथ स्थित - यह उत्तराखंड में स्थित है। बाबा केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है। केदारनाथ समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। भारतीय कलाकारों द्वारा गाया हुआ केदारनाथ धाम की भक्ति में यह सुन्दर गान सुनिए।




6- भीमाशंकर-भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थित है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। 

7- काशी विश्वनाथ-विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह उत्तर प्रदेश के काशी नामक स्थान पर स्थित है। काशी सभी धर्म स्थलों में सबसे अधिक महत्व रखती है। इसलिए सभी धर्म स्थलों में काशी का अत्यधिक महत्व है। 

8- त्र्यंबकेश्वरयह - यह ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के करीब महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के सबसे अधिक निकट ब्रह्मागिरि नाम का पर्वत है। इसी पर्वत से गोदावरी नदी शुरूहोती है। भगवान शिव का एक नाम त्र्यंबकेश्वर भी है। 

9- वैद्यनाथ- श्री वैद्यनाथ शिवलिंग का समस्त ज्योतिर्लिंगों की गणना में नौवां स्थान बताया गया है। भगवान श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर अवस्थित है, उसे वैद्यनाथ धाम कहा जाता है। यह स्थान झारखण्ड प्रान्त के संथाल परगना के दुमका नामक जनपद में पड़ता है।

10- नागेश्वर ज्योतिर्लिंग - यह ज्योतिर्लिंग गुजरात  के द्वारिका स्थान में स्थित है। धर्म शास्त्रों में भगवान शिव नागों के देवता है और नागेश्वर का पूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है। भगवान शिव का एक अन्य नाम नागेश्वर भी है। 

11- रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग- यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामनाथ पुरं नामक स्थान में स्थित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ-साथ यह स्थान हिंदुओं के चार धामों में से एक भी है। इस ज्योतिर्लिंग के विषय में यह मान्यता है, कि इसकी स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। 


12-घृष्णेश्वर मन्दिर- घृष्णेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के संभाजीनगर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है। इसे घृसणेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। 


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हर हर महादेव*****

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