Saturday 13 August 2016

बिरुल बाजार, एक भयावह भविष्य!

बिरुल बाजार मुललाई तहसील, जिला बैतुल में स्थित एक बड़ा गाँव है। मुललाई से इसकी दूरी करीब 14 कि. मी. है। यह गांव मुललाई से सड़क मार्ग से जुड़ा है। सड़क का करीब 1 कि. मी. भाग जमीन विवाद के कारण अभी भी कच्चा है। बिरुल बाजार की जनसंख्या 2011 की जनगणना के आधार पर 5796 है। यहाँ की साक्षरता दर करीब 80% है। पंचायती राज कानून के तहत बिरूल बाजार स्थानीय ग्राम पंचायत द्वारा प्रशासित है। कहते है, बरसों से ग्राम पंचायत स्वार्थ की राजनीति और विभिन्न समूह में बंटे होने  के कारण ग्राम की वांछित प्रगति नही हो पाई। हॉ, मुखिया लोगों की सपन्नता कई गुना विकसीत हुई है।

बिरुल बाजार के निवासियाें का मुख्य व्यवसाय खेती है । किसान लोग कुछ अपवादों को छोड़कर प्रायः पुरानी पारंपारिक विधि से ही कृषि करते है । सिंचाई का मुख्य श्रोत कुएं, बोर वेल, और आंशिक मात्रा में ताप्ती नदी  पर ग्राम चंदोरा-ताइखेड़ा में बंधे बांध  से निकली हुई नहर द्वारा होता है।गोभी जैसी नकदी फसल की ओर किसानों का ज्यादा झुकाव होने के कारण सिंचाई की माँग विगत वर्षो में कई गुना बढ़ी है।फलस्वरूप,  जिस तरह किसान हर वर्ष ट्यूबवेल बना रहे हैं,  गांव का जमीनी  वाटर लेवल बहुत ही नीचे चला जा रहा है। गर्मियों के दिनों में 8-8 दिन बाद पीने  का पानी मिलता हैं । सबसे बड़ी संकट की बात है कि जनवरी माह के आते आते बहुत ही कम कुंओ और ट्यूबवैलों में पानी बचता है। इस कारण यहाँ  के किसान प्रायः गर्मी में अपनी कोई फसल की पैदावार नहीं ले सकते हैं। अधिकांश कुओं में पानी नही होने से पीने के पानी के लिए तक  स्थानीय लोगों को मुसीबत झेलना पड़ता है।

वर्तमान समय में बिरूल बाजार की सबसे बड़ी गंभीर  समस्या जमीनी वाटर लेवल का  कम होना है।  यदि इसके लिए अभी से प्रयास शुरू नहीं किए गए तो गांव की स्थिति और भी भयावह और चिन्ताजनक हो सकती है। हालत आर्थिक कठिनाइयों और असुरक्षित भविष्यों की ओर जा रही है और कहीं किसान आत्महत्या की ओर न बढ़े, इसकी आशंका दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। इस गंभीर समस्या पर प्रशासन का ध्यान नही है।

इस समस्या का तुरन्त निदान निकालना होगा।

अगर  किसानो की  आर्थिक परिस्थिती सुधरेगी तो सारी समस्या दूर हो सकती है । हालत न सुधरने पर बच्चों की उचित शिक्षा  पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि अधिकांश लोग अपने बच्चों को पैसों के अभाव की वजह से उच्च शिक्षा के लिए  बाहर नहीं भेज पायेंगे। परिणाम स्वरूप आने वाली तरुण पीढ़ी अच्छी शिक्षा से वंचित रह जायेगी।

समाधान एक ही दिखता है, वह है Rain Water Harvesting (RWH)  यानि की वर्षा के पानी का संचयन और संग्रहण। इस विधि को बिना विलंब कार्यान्वित करने की जरूरत है, और वह भी एक बड़े पैमाने पर। किसानों के जीवन में आत्मनिर्भरता और आर्थिक खुशहाली लाने के लिए यही  एक मात्र पर्याय बचा है। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित गाँव हिवरे बाजार इसका ज्वलंत उदाहरण  हम सबके सामने है। हिवरे बाजार की हालत बिरुल बाजार से भी बहुत ज्यादा गंभीर थी । स्थानीय लोगों के प्रयासों से आज वहां पर 80 से ज्यादा लोग करोड़पति है । वहाँ के सरपंच श्री पोपटराव पंवार के मार्गदर्शन में RWH की योजनाओं को अपना कर यह परिवर्तन संभव हो पाया है। बिरुल बाजार  की स्थिति इतनी भी बेकार नहीं है,  बस अगर जमीनी वाटर लेवल बढ़ जाए तो  गांव एक बहुत अच्छी संपनता की ओर अग्रसर हो सकता  है।

विगत 2-4  वर्षों से मैं देखा गया है कि बिरुल बाजार के आसपास सभी दूर- दराज़ तक अच्छी बारिश होती है, लेकिन बिरूल बाजार सुखा ही रह जाता है। कारण यहॉ के लोग निरंतर पेड़ों को काट रहे हैं और नए वृक्षारोपण के प्रयास बिल्कुल भी नहीं कर रहे हैं। जिसके कारण आस-पास के गांवों में तो बहुत वर्षा होती है, लेकिन बिरुल बाजार वर्षा से वंचित रह जाता है।

बिरूल बाजार के निवासी कहते है कि उन्होंने अपने बड़े वृद्ध पुरुषों,  दादाजी - नाना जी से सुना है कि एक समय  ऐसा था जिस समय बिरुल बाजार की मुख्य नदी " घानदेव  नदी" में गर्मी के दिनों में भी पानी हुआ करता था । आज परिस्थिती बिलकुल उल्टी है। नदी तो क्या गॉव के एक मात्र तालाब में भी गर्मी के दिनों में पानी नदारद सा रहता है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग की तकनीकी  अपनाकर और अधिक से अधिक वृक्षारोपण कर हम अतीत की  स्थिति को दोबारा वापस ला सकते है, इसमें अंश मात्र भी संदेह नही।

फिलहाल लोग RWH नहीं अपनाना चाहते हैं और इसे कुछ लोगों के खाली दिमाग की उपज कहते है। कारण वे लोग इस तकनीकी से अनजान हैं । कुछ लोगों को इसके बारे में आंशिक जानकारी है भी लेकिन जमीन के नीचे पानी किस तरह से पहुंचता है और हम उसमें  किस तरह से बढ़त कर वापस निकाल सकते  हैं, नही जानते। तकनीकि जानकारी न होने से लोग  पूरी तरह रेन वाटर हार्वेस्टिन्ग अपनाने के लिए तैयार नही है। यदि हम जैसे लोगों  स्थानीय किसानोंं और प्रशासन के व्यक्तियों को किसी भी तरह से यह बात समझा सके कि रेन वाटर हारवेस्टिंग क्या होती है, इसके क्या क्या फायदे हैं, और इसके क्या क्या अच्छे परिणाम हो सकते है  तो वास्तव में इसे अपनाकर बिरुल बाजार  कुछ ही वर्षों में अपनी  काया पलट कर सकता है।

स्थानीय निवासी और तकनीकी ज्ञान रखने वाले उन्नत विचारशील युवा श्री अमित कनेरे का कथन सत्य है। उन्हीं के शब्दों में "हमारी खेती वाली भूमि का वाटर लेवल निरंतर गिर रहा है । मैंने देखा जब मैं छोटा था, मेरे खेत में आम की अमराई हुआ करती थी। साथ ही हमारे गांव में और भी कई सारी अमराईयां हुआ करती थी । लेकिन वाटर लेवल गिरने से सारी की सारी अमराई सूख गई है। अब हमारे गांव में बहुत ही कम आम के पेड़ बचे हैं और यह निरंतर चलता रहा तो बचे खुचे बाकी बड़े-बड़े पेड़ भी सूख जायेंगे।"

अमित ने आगे भी कहा है कि हर साल की बरसात से और  तालाब और छोटे-मोटे नदी नालों से पानी जमीन में नीचे तक पहुंचता है । हर साल अगर अच्छी बरसात होती रहे तो आठ दस सालों में हमारे जमीन का वाटर लेवल बढ़ सकता है । परंतु लोग आजकल हर साल ट्यूबवैल लगा रहे हैं और जो 8-10 साल से नीचे पानी भरा हुआ है, उसे एक ही बार में निकाल लेते हैं। हर साल अब यही हो रहा है , डाल कम रहे हैं और निकाल ज्यादा रहे हैं। पहले यहां सब साधन नहीं थे तो हमारी जमीन का  वाटर लेवल भी अच्छा हुआ करता था। लेकिन अभी ट्यूब वेल, मोटर पंप और अत्याधुनिक साधनों का उपयोग होने के कारन हम जमीन से पानी बहुत तेजी से निकाल रहे हैं । इसी से हमारा वाटर लेवल कम होते जा रहा है। साथ ही बरसात इसलिए नहीं हो रही है, क्योंकि हमारे यहां पर पेड़ नहीं के बराबर है । आप google map से  देख सकते हैं कि हमारे गांव में पेड़ों की डेंसिटी कितनी कम है और आस-पास के गांवो  में पेड़ों की डेंसिटी कितनी ज्यादा है । परिणाम स्वरूप वहां पर तो अच्छी बरसात हो जाती है, पर हमारा गांव वैसा का वैसा ही सुखा रह जाता है।

बिरूल बाजार के निवासियों की RWH न अपनाने की मानसिकता भी बदल सकती है, यदि उन्हें इस ओर अच्छी जानकारी प्रदान कर उत्साहित किया जाए। इसके लिए कुछ जानकार और प्रगतिशील लोगों ने प्रयास किया तो । इसके लिए कुछ ऐसे लोगों की एक समिति बनानी होगी जो लोगों को यह बता सके कि पानी किस तरह जमीन के अन्दर जाता है, उसकी मात्रा कैसे बढ़ाई जा सकती है, जमीनी पानी का स्तर कैसे बढ़ा सकते हैं  और हम  किस तरह सिंचाई के उन्नत साधन जैसे ड्रिप इरीगेशन आदि अपना कर पानी की खपत को कम कर सकते  हैं । हिवरे बाजार का उदहारण देकर हमें हिवरे बाजार के कई सारी वीडियो, जो इंटरनेट, यू- ट्यूब आदि पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, अनेकों समूहों में आम नागरिकों को  दिखाने होंगे।

और यह सब बिरुल बाजार के युवा लोग ही कर सकते हैं क्योंकि कहते हैं कि गांव के "अंकल" लोगों की मानसिकता इस कार्य को हँसी मजाक के रूप में ही लेगी।  उन्हें समझाने की अमित जैसे लोगों ने काफी कोशिश की भी,  लेकिन उसके अकेले के कहने से यह नहीं होगा।

आप नाशिक को ही देख लीजिए वहां पर जिस भी किसान के पास 3 एकड़ भी जमीन है वह इंसान करोड़पति है

अभी बिरुल बाजार के लोग विभिन्न डैमों की राह तकते रहते हैं। उम्मीद रखते है  कि अभी डेम बनेंगे हमारे गांव में नहर आयेगी। अभी बिरुल बाजार के बगल में एक दहगुड़ पर डैम बना हुआ है , जिससे लोगों को लगता है कि उनका वाटर लेवल बढ़ जाएगा और बिरुल बाजार जैसे गाँवों में नहर का पानी आएगा। लेकिन वाटर लेवल इतने आसानी से नहीं बढ़ता  है। यदि आप प्रयास नहीं करेंगे तो वाटर लेवल तो कभी बढ़ने वाला नहीं है और पानी तो तभी आएगा जब आपके यहां अच्छी वर्षा होगी ।। जब आपके यहां पर पेड़ ही कम होते जा रहे हैं तो वर्षा कहां से होगी? इसीलिए इन सारी बातों को अभी से सोचना होगा । सोचना क्या बिना विलंब किए RWH को अमल में लाकर और अधिक से अधिक तादाद में वृक्षारोपण कर परिस्थिती र्को बदलना होगा। अन्यथा समस्या विक्राल और भयावह रुप लेकर  किसानों को आत्महत्या वाले मार्ग पर ढकेलने में ज्यादा विलंब और दया नहीं करेगी।

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This post has major inputs, and suggestions from a friend, Sh Amit Kanere. Amit, thanks for your valuable time & inspiration. Wish you all the best for real field work.

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